कबीर सागर में 29वां अध्याय ‘‘पंचमुद्रा‘‘ पृष्ठ 181 पर है। यह भी 33 अरब वाणी वाला ज्ञान है। (तेतीस अरब ज्ञान हम भाखा, मूल ज्ञान गोय हम राखा।) मूल ज्ञान निम्न पढ़ें:-
परम पूज्य कबीर साहेब (कविर् देव) की अमृतवाणी
संतो शब्दई शब्द बखाना।।टेक।।
शब्द फांस फँसा सब कोई शब्द नहीं पहचाना।।
प्रथमहिं ब्रह्म स्वं इच्छा ते पाँचै शब्द उचारा।
सोहँग, ज्योति निरंजन, रंरकार, शक्ति और ओंकारा।।
पाँचै तत्त्व प्रकृति तीनों गुण उपजाया।
लोक द्वीप चारों खान चैरासी लख बनाया।।
शब्दइ काल कलंदर कहिये शब्दइ भर्म भुलाया।
पाँच शब्द की आशा में सर्वस मूल गंवाया।।
शब्दइ ब्रह्म प्रकाश मेंट के बैठे मूंदे द्वारा।
शब्दइ निरगुण शब्दइ सरगुण शब्दइ वेद पुकारा।।
शुद्ध ब्रह्म काया के भीतर बैठ करे स्थाना।
ज्ञानी योगी पंडित औ सिद्ध शब्द में उरझाना।।
पाँचइ शब्द पाँच हैं मुद्रा काया बीच ठिकाना।
जो जिहसंक आराधन करता सो तिहि करत बखाना।।
शब्द ज्योति निरंजन चांचरी मुद्रा है नैनन के माँही।
ताको जाने गोरख योगी महा तेज तप माँही।।
शब्द ओंकार भूचरी मुद्रा त्रिकुटी है स्थाना।
व्यास देव ताहि पहिचाना चांद सूर्य तिहि जाना।।
सोहं शब्द अगोचरी मुद्रा भंवर गुफा स्थाना।
शुकदेव मुनी ताहि पहिचाना सुन अनहद को काना।।
शब्द रंरकार खेचरी मुद्रा दसवें द्वार ठिकाना।
ब्रह्मा विष्णु महेश आदि लो रंरकार पहिचाना।।
शक्ति शब्द ध्यान उनमुनी मुद्रा बसे आकाश सनेही।
झिलमिल-2 जोत दिखावे जाने जनक विदेही।।
पाँच शब्द पाँच हैं मुद्रा सो निश्चय कर जाना।
आगे पुरुष पुरान निःअक्षर तिनकी खबर न जाना।।
नौ नाथ चैरासी सिद्धि लो पाँच शब्द में अटके।
मुद्रा साध रहे घट भीतर फिर ओंधे मख्ुा लटके।।
पाँच शब्द पाँच है मुद्रा लोक द्वीप यमजाला।
कहैं कबीर अक्षर के आगे निःअक्षर का उजियाला।।
जैसा कि इस शब्द ‘‘संतो शब्दई शब्द बखाना‘‘ में लिखा है कि सभी संत जन शब्द (नाम) की महिमा सुनाते हैं। पूर्णब्रह्म कबीर साहिब जी ने बताया है कि शब्द सतपुरुष का भी है जो कि सतपुरुष का प्रतीक है व ज्योति निरंजन (काल) का प्रतीक भी शब्द ही है। जैसे शब्द ज्योति निरंजन यह चांचरी मुद्रा को प्राप्त करवाता है इसको गोरख योगी ने बहुत अधिक तप करके प्राप्त किया जो कि आम (साधारण) व्यक्ति के बस की बात नहीं है और फिर गोरख नाथ काल तक ही साधना करके सिद्ध बन गए। मुक्त नहीं हो पाए। इसीलिए ज्योति निरंजन नाम का जाप करने वाले काल जाल से नहीं बच सकते अर्थात् सत्यलोक नहीं जा सकते। शब्द ओंकार (ओ3म) का जाप करने से भूंचरी मुद्रा की स्थिति में साधक आ जाता हे। जो कि वेद व्यास ने साधना की और काल जाल में ही रहा। सोहं नाम के जाप से अगोचरी मुद्रा की स्थिति हो जाती है और काल के लोक में बनी भंवर गुफा में पहुँच जाते हैं। जिसकी साधना सुखदेव ऋषि ने की और केवल श्री विष्णु जी के लोक में बने स्वर्ग तक पहुँचा। शब्द रंरकार खैंचरी मुद्रा दसमें द्वार (सुष्मणा) तक पहुँच जाते हंै। ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों ने ररंकार को ही सत्य मान कर काल के जाल में उलझे रहे। शक्ति (श्रीयम्) शब्द ये उनमनी मुद्रा को प्राप्त करवा देता है जिसको राजा जनक ने प्राप्त किया परन्तु मुक्ति नहीं हुई। कई संतों ने पाँच नामों में शक्ति की जगह सत्यनाम जोड़ दिया है जो कि सत्यनाम कोई जाप नहीं है। ये तो सच्चे नाम की तरफ इशारा है जैसे सत्यलोक को सच्च खण्ड भी कहते हैं एैसे ही सत्यनाम व सच्चा नाम है। केवल सत्यनाम-सत्यनाम जाप करने का नहीं है। इन पाँच शब्दों की साधना करने वाले नौ नाथ तथा चैरासी सिद्ध भी इन्हीं तक सीमित रहे तथा शरीर में (घट में) ही धुनि सुनकर आनन्द लेते रहे। वास्तविक सत्यलोक स्थान तो शरीर (पिण्ड) से (अण्ड) ब्रह्मण्ड से पार है, इसलिए फिर माता के गर्भ में आए (उलटे लटके) अर्थात् जन्म-मृत्यु का कष्ट समाप्त नहीं हुआ। जो भी उपलब्धि (घट) शरीर में होगी वह तो काल (ब्रह्म) तक की ही है, क्योंकि पूर्ण परमात्मा का निज स्थान (सत्यलोक) तथा उसी के शरीर का प्रकाश तो परब्रह्म आदि से भी अधिक तथा बहुत आगे (दूर) है। उसके लिए तो पूर्ण संत ही पूरी साधना बताएगा जो पाँच नामों (शब्दों) से भिन्न है।
यह है पंच मुद्रा बोध जो मूल यानि यथार्थ ज्ञान है।
काल वाले बारह पंथियों की अल्प बुद्धि का एक प्रमाण दिखाता हूँ। पंच मुद्रा के पृष्ठ 190-191 पर कमलों का वर्णन है। यह पहले भी तीन अध्यायों में लिखा है। दो अध्यायों में तो आठवें कमल तक की जानकारी है। एक अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ में पृष्ठ 111 पर नौ कमलों का ज्ञान है। सर्व कबीर पंथी केवल आठ कमल ही मानते हैं जबकि पंच मुद्रा में पृष्ठ 190 तथा 191 पर नौ कमलों का ज्ञान है। अपनी अल्प बुद्धि से पृष्ठ 191 पर तीसरी वाणी में अष्ट कमल कुल कमल लिख दिए हैं जबकि पृष्ठ 190.191 पर लिखी वाणी में नौ कमल भिन्न-भिन्न लिखे हैं। कृपा पृष्ठ 190-191 की कुछ वाणी पढ़ें:-
योगजीत वचन
हे सुक्रित मैं तुम्हैं लखाऊं। कमलनको प्रमान बताऊं।।
प्रथमहि कमल चतुरदल कहिये। देवगणेश पुन तामों लहिये।।
रिद्धसिद्ध जहाँ सक्त उपासा। तहाँ जा पूछै सो प्रकाशा।।
षटदल कमल ब्रह्म को बासा। सावित्री तहाँ कीन्ह निवासा।।
षटसहस्त्रा तहाँ जाप बखाना। देवन सहित इंद्र अस्थाना।।
अष्टदल कमल हरि लक्ष्मी वासा। षटसहस्त्रा तहाँ जाप निवासा।।
द्वादश कमलमों शिवको जाना। षटहजार जाप बंधाना।।
तहाँ शिव योग लगावें तारी पारवती संग सहित विचारी।।
षोडश कमल जीव मन वासा। एक सहस्त्रा जाप प्रकाशा।।
त्रैदल कमल भारथी वासा। सोतो उज्ज्वल कमल निवासा।।
एक सहस्त्रा जाप तहाँ कीजै। यह संकल्प जाय तहाँ दीजै।।
दोय दल कमल हंस अस्थान। तामह पर्म हंसको जाना।।
एक सहस्त्रा जाप प्रकाशा। कर्म भ्रमको है तहाँ नाशा।।
सहस्त्रादल कमलमों झिलमिल जाना। ज्योति सरूप तहाँ पहिचाना।।
ताहै रंगहै अलख अपारा। अलख पुर्ष है सबते सारा।।
नवें कमल आद को जानो। जाते निरगुण पुरूष बखानो।।
एक इस हजार छैसे जाप कहिये। सो सब पुरूष ध्यानमों लहिये।।
अष्ट कमल को भेद बताई। और ज्ञान अब भाषो भाई।।
विचार करें:- वाणी तो नौ कमल स्पष्ट भिन्न-भिन्न प्रमाणित कर रही है और अंतिम पंक्ति में लिख दिया कि:- ‘‘अष्ट (आठ) कमल को भेद बताई और ज्ञान अब भाषों भाई।‘‘ यह इनकी अल्प बुद्धि का प्रमाण है। यथार्थ ज्ञान आप जी ने ऊपर पढ़ा, वह पर्याप्त है। यथार्थ वाणी है:-
सर्व कमलन को भेद बताई। और ज्ञान अब भाषो भाई।।
कबीर सागर में कई अध्यायों में कमलों की जानकारी है। जैसे अनुराग सागर के पृष्ठ 151 पर आठ कमलों की जानकारी है। आठवां कमल दो दल का कहा है और ज्योति निरंजन का ठिकाना कहा है। भवतारण बोध के पृष्ठ 57 पर आठ कमलों का वर्णन है। इसमें छठे कमल में तीन पंखुड़ी लिखी हैं। सरस्वती का निवास लिखा है तथा सातवें कमल की दो पंखुड़ी लिखी हैं।आठवें कमल में काल निरंजन का निवास कहा है। यह सही वर्णन है, परंतु अधूरा है। सम्पूर्ण वर्णन कबीर सागर के अध्याय पंच मुद्रा पृष्ठ 190.191 पर तथा अध्याय कबीर बानी पृष्ठ 111 पर है। जिनमें नौ कमलों का क्रमानुसार वर्णन है। यदि कमलों के वर्णन से छेड़छाड़ न की होती तो कोई भ्रम उत्पन्न नहीं होता। यथार्थ ज्ञान पढ़ें इसी पुस्तक में अध्याय ‘‘अनुराग सागर’’ के सारांश में पृष्ठ 152 पर तथा अंत में लगे कमलों के चित्र में तथा उसके पीछे लिखे उल्लेख में।
कबीर सागर के अध्याय ‘‘पंच मुद्रा‘‘ का सारांश सम्पूर्ण हुआ।