कबीर सागर में संतोष बोध 27वां अध्याय पृष्ठ 151 पर है। परमेश्वर कबीर जी ने कबीर बानी अध्याय के पृष्ठ 137 पर कहा है कि ‘‘तेतीस अरब ज्ञान हम भाखा। मूल ज्ञान हम गोय ही राखा।।‘‘ संतोष बोध उस तेतीस अरब वाणियों में से है।
संतोष का अर्थ है सब्र। परमात्मा जैसे रखे और जो दे, उसमें संतुष्ट रहना संतोष है। भक्त को भक्ति मार्ग में 16 साधन करते होते हैं जो भक्त का आभूषण कहा है। उनमें से एक संतोष है। कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि:-
गज (हाथी) धन, राज धन और धन न की खान। जब आया संतोष धन, सब धन धूर समान।।
संतोष धन का व्याख्यान पर्याप्त है। अध्याय का नाम गलत रखा है तो भी इसके ज्ञान को 33 अरब वाला जानकर छोड़ देना चाहिए।
संतोष बोध पृष्ठ 158 पर नौ तत्त्व बताए हैं। 1) पृथ्वी 2) जल 3) वायु 4) अग्नि 5) आकाश 6) तेज 7) सुरति 8) निरति 9) शब्द लिखे हैं। इसमें शब्द ‘‘तत्त्व‘‘ गलत लिखा है। शब्द तो आकाश तत्त्व का गुण है। यह ‘‘मन‘‘ तत्त्व है। शेष पृष्ठों पर कमलों का ज्ञान है वह भी अधूरा। सृष्टि रचना का ज्ञान भी आंशिक लिखा है। इसलिए यह सर्व ज्ञान पूर्व के अध्यायों में लिखा जा चुका है।