कबीर सागर में 37वां अध्याय सुमिरन बोध पृष्ठ 1742 पर है।
विवेचन:- पाठकों से बार-बार निवेदन किया है कि काल प्रेरित ज्ञानहीन कबीर पंथियों ने कबीर सागर के यथार्थ ज्ञान को समाप्त कर रखा है। उसकी पूर्ति परमेश्वर कबीर जी ने अपने अंश संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर, प्रान्त-हरियाणा) से कराई है। सुमिरन बोध के प्रारम्भ में आदि गायत्री का वर्णन है जो काटा गया है। फिर भी जो शेष है, उससे भी हमारा सत्यस्पष्ट हो जाता है।
पृष्ठ 1 पर छोटा सुमिरन बोध प्रारम्भ होता है। सुमिरन बोध के दो भाग लिखे हैं जबकि यह एक ही भाग है। प्रथम यानि छोटा सुमिरन बोध की वाणी।
सुमिरन आदि गायत्री
आदि गायत्री सुमिरन सारा। सुमिरन हंस उतारे पारा।।
कोटि अठासी घाट हैं। यम बैठे तहं रोक। आदि गायत्री सुमिरिके। हंसा होय निशोक।।
घाटि घाटिन नाखी आगे तब जाई। सकल दूत रहे पछताई।।
आगे मकर तार है डोरी। जहां यम रहे मुख मोरी।।
ओहं सोहं नाम के आगे करे पियान। अजर लोक बासा करे, जग मग द्वीप स्थान।।
आदि गायत्री सुमिरिके। आवा गमन नशाया।। सत्यलोक बासा करे। कह कबीर समझाय।।
भावार्थ:- ज्ञानहीन कबीर पंथियों ने कबीर परमेश्वर के यथार्थ ज्ञान को अज्ञान बना अड़ंगा करके लिखा है।
जैसा कि आप जी को बताया है कि यथार्थ ज्ञान परमेश्वर कबीर जी ने अपनी प्यारी आत्मा अपने नाद के सपूत यानि शिष्य गरीबदास जी द्वारा यथार्थ ज्ञान उजागर करवाया है। संत गरीबदास जी ने गायत्री मंत्र जो बताया है, वह शरीर में बने कमलों में विराजमान देवताओं की साधना का है जो जीव के घाट (मार्ग) को रोके बैठे हैं। इन देवताओं द्वारा रोके गए मार्ग गायत्री मंत्र से खुल जाते हैं। इन मंत्रों का नाम संत गरीबदास जी ने ब्रह्म गायत्री मंत्र कहा है। इनके द्वारा मार्ग छोड़ देने के पश्चात् सर्व देव अपने आप रास्ता छोड़ते चले जाते हैं। फिर यम के दूत भी उस साधक को बाधा नहीं करते। कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर’’ में पृष्ठ पर भी पाँच नामों के स्मरण का प्रमाण है।
वाणी:-
पाँच नाम कही तब दल फेरा। पुरूष नाम लीन्हो तीहीं बारा।।
इन्हीं पाँच नामों वाले मंत्र ब्रह्म गायत्री का ज्ञान संत गरीबदास जी ने ‘‘ब्रह्म बेदी‘‘ नामक अध्याय यानि अंग में दिया है। ब्रह्मबेदी का कुछ अंश आगे लिखा है:-