अध्याय स्वसमवेद बोध का सारांश

कबीर सागर में 32वां अध्याय ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ पृष्ठ 77 पर है। जैसा कि पूर्व में लिख आया हूँ कि कबीर सागर ग्रन्थ को काल द्वारा चलाए 12 कबीर पंथों के कुछ अनुयाईयों ने अपनी बुद्धि अनुसार कबीर ज्ञान से कुछ वाणी काटी हैं, कुछ मिलाई हैं। कुछ प्रकरण कांट-छांट करके लिखे हैं। यही दशा ‘‘स्वसमवेद बोध‘‘ में की है। इस अध्याय वाला ज्ञान पहले ‘‘अनुराग सागर‘‘ में ज्ञान
प्रकाश, ज्ञान बोध, मुक्ति बोध में वर्णित है। कुछ ज्ञान जो परमेश्वर कबीर जी की लीला वाला है। वह कबीर चरित्र बोध में है, उसको वहाँ लिखेंगे।

कुछ ज्ञान जो ‘‘कलयुग में सर्व सृष्टि उपदेश लेकर भक्ति करेगी, सतयुग जैसा वातावरण होगा‘‘ है, इसका विवरण पहले भी अध्याय अनुराग सागर तथा कबीर बानी में आंशिक लिखा है। यहाँ पर शब्दार्थ करके लिखूंगा। स्वसमबेद बोध पृष्ठ 77 से 86 तक शरीरों की सँख्या बताई है। तत्त्वों तथा उनकी प्रकृति का ज्ञान है।

शरीर पाँच बताए हैं:- 1ण् स्थूल शरीर 2ण् इसके अंदर सूक्ष्म यानि लिंग शरीर 3ण् इसके अंदर कारण शरीर 4ण् इसके अंदर महाकारण शरीर 5ण् इसके अंदर कैवल्य शरीर है। जीव के ऊपर इतने सुंदर शरीर (वस्त्रा) डाल रखे हैं।

स्वस्मवेद बोध पृष्ठ 86 से 90 का सारांश:- इन पृष्ठों में प्रथम दीक्षा मंत्र बताए हैं।
 

Sat Sahib