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अध्याय विवेक सागर का सारांश
कबीर सागर का पाँचवा अध्याय ‘‘विवेक सागर‘‘ पृष्ठ 68 (354) पर:-
इस अध्याय में कहा है कि:-
इस जीव को विकार नचा रहे हैं। काम (sex), क्रोध, मोह, लोभ तथा अहंकार। जिनके वश काल लोक की महान शक्तियाँ भी हैं। जैसे ब्रह्मा जी जो अपनी पुत्राी को देखकर कामवश प्रेरित हो गया था तथा अहंकार के कारण श्री ब्रह्मा जी तथा श्री विष्णु जी का युद्ध हुआ। काम वासना के वश बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि भी अपना धर्म-कर्म नष्ट कर गए। इन सर्व विकारों से बचकर मोक्ष
प्राप्ति का एकमात्रा मार्ग तत्त्वज्ञान है तथा सारनाम है।
इस पूरे विवेक सागर में यह सारांश है।