कबीर सागर में अम्बुसागर तीसरा अध्याय है जो पृष्ठ 1 (287) पर है। अम्बुसागर अध्याय में 14 तरंग (भाग) हैं। आप जी सृष्टि रचना में पढ़ें, उसमें प्रमाण है कि काल के इक्कीस ब्रह्माण्ड हैं। उसने 5 ब्रह्माण्डों का एक ग्रुप (समूह) बनाया। ऐसे-ऐसे चार समूह पाँच-पाँच ब्रह्माण्डों के बनाए हैं। एक ब्रह्माण्ड भिन्न रखा है जो इन सबके समान क्षेत्राफल वाला है। अब जो वर्णन आप जी अम्बुसागर में पढ़ेंगे, वह तेरह तरंगों वाला वर्णन इस ब्रह्माण्ड (जिसमें हम रह रहे हैं) का नहीं है। वह विवरण पाँचवें ब्रह्माण्ड का है जो समूह के मध्य वाला है। पाँचवें ब्रह्माण्ड में प्रत्येक ब्रह्माण्ड के सामान्तर सृष्टि चलती है। विस्तार से इस प्रकार है:- जिस ब्रह्माण्ड में हम रह रहे हैं। इसमें जो परमेश्वर कबीर जी की भक्ति सतनाम तक करते रहे हैं। वे बीच में भक्ति छोड़ गए। गुरूद्रोही नहीं हुए। उनको धोखा देने के लिए उस पाँचवें मध्य वाले ब्रह्माण्ड में रोके रखता है। ॐ (ओम्) नाम जाप की भक्ति की कमाई तो इसी ब्रह्माण्ड (जिसमें हम रह रहे हैं) ब्रह्म लोक में भोगते हैं। पुनः जन्म-मरण चक्र में गिर जाते हैं। इसके चार युग हैं। (सत्ययुग, त्रोतायुग, द्वापरयुग तथा कलयुग) जिनका वर्णन चतुर्दश तरंग में है। उस पाँचवें (मध्य वाले) ब्रह्माण्ड में 13 युग हैं। वहाँ पर वे जीव काल ब्रह्म द्वारा भेजे जाते हैं जो सोहं नाम का जाप करते हैं तथा जो केवल सतनाम का जाप करते हैं। सतनाम के जाप के ॐ (ओम्) की भक्ति कमाई इस ब्रह्माण्ड के ब्रह्मलोक में भोगते हैं। दूसरे मंत्र सोहं की कमाई इस पाँचवें ब्रह्माण्ड में भोगने के लिए भेज दिए जाते हैं। वहाँ भी एक ब्रह्मलोक है तथा अन्य लोक हैं। वहाँ के ब्रह्म लोक में सुख भोगने के पश्चात् उनको अन्य द्वीपों में राजा-रानी तथा जनता के रूप में जन्म दिया जाता है। फिर वे व्यक्ति वहाँ भी भक्ति करते हैं। राज का सुख वहाँ भोगते हैं।
आप जी ने कई प्रसंगों में पढ़ा है कि एक प्रियवत राजा था। उसने ग्यारह अरब वर्ष तप किया। इतने वर्ष उस तप के प्रतिफल में राज किया। यह उस पाँचवें ब्रह्माण्ड में डले ढ़ोए जाते हैं यानि व्यर्थ साधना की जाती है। यह पाँचवां ब्रह्माण्ड केवल इसी कार्य के लिए काल ब्रह्म ने रखा है। प्रथम तरंग में अघासुर युग की कथा है।