अक्षय तरूण युग, नंदी युग - अम्बुसागर

दसवें अक्षय तरूण युग का वर्णन

अम्बुसागर पृष्ठ 44 पर:-

परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि हे धर्मदास! इस युग में उसी ब्रह्माण्ड में काल का कूर्म था। उसको समझाया, उसने दीक्षा ली। वहाँ पर एक नरक है। उसमें 84 कुण्ड बने हैं। प्रत्येक कुण्ड पर यम दूतों का पहरा है। उनके 14 यम मुखियाँ हैं। उनके नाम बताए हैं।

चैदह यमों के नाम

1) मृत्यु अंधा 2) क्रोधित अंधा 3) दुर्ग अभिमाना 4) मन करन्द 5) चित चंचल 6) अपर बल 7) अंध अचेत 8) कर्म रेख 9) अग्नि घंट 10) कालसेन 11) मनसा मूल 12) भयभीत 13) तालुका 14) सुर संहार।

परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैंने सब यमदूतों को पकड़ लिया। फिर प्रत्येक कुण्ड में दूत जीवों को सता रहे थे। मैं वहाँ खड़ा हो गया। यमदूत उन नरक कुण्डों में पड़े प्राणियों को पकड़-पकड़कर पीट रहे थे। उनमें 28 लाख नकली गुरू भी नरक भोग रहे थे। मुझे देखकर नकली गुरूओं ने बचाने की पुकार की। मैंने कहा कि तुमने मेरे जीवों को भ्रमित करके काल के जाल में डाला है। मेरा मार्ग छुड़वाकर काल मार्ग बताया है। आप भी यहीं पर नरक में पड़े हो, सड़ो। उन सब यमों को तथा दूतों (नकली कड़िहारों यानि नकली दूतों) को चोटी पकड़-पकड़कर घसीटा-पीटा। फिर उन नकली गुरूओं ने क्षमा याचना की। कहा कि हे परमात्मा! हमसे भूल हुई है। हम काल के वश हैं। हमारे स्वामी ने जो आज्ञा दी, हमने पालन किया। हमारी गलती क्षमा करें। यह सुनकर मैं हँसा और कहा कि दूतों (नकली गुरूओं) की बँध नहीं छुड़वाई जाएगी। उन
कुण्डों में जो नकली गुरूओं के शिष्य थे, वे भी वहीं नरक भोग रहे थे। जब तक मैं वहाँ पर रहा, तब तक सब जीवों को नरक की पीड़ा नहीं हुई। मेरे जाने के पश्चात् फिर से वही यातनाऐं उनको प्रारम्भ हो गईं। अक्षयतरूण युग में 5 लाख जीवों को मोक्ष प्राप्त करवाया।

ग्यारहवें नंदी युग का वर्णन

अम्बुसागर पृष्ठ 49 तथा 50 पर:-

परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि हे धर्मदास! अब नंदी युग की कथा बताता हूँ। एक गुप्तमुनि था जो आँखें बंद किए ध्यान लगाए बैठा था। करोड़ वर्ष साधना करते बीत चुके थे। मैं उनके पास बैठ गया। जब ऋषि ने आँखें खोली तो उसने कहा कि आप कौन हैं? मैंने आज तक ऐसी शोभा वाला व्यक्ति नहीं देखा। शरीर का ऐसा रूप कभी नहीं देखा। कहा, आप कौन हो? कहाँ से आए हो? मैंने उत्तर दिया कि मैं सतलोक से आया हूँ। सतलोक की व्यवस्था बताई तो गुप्तमुनि ने लोक देखने की प्रबल इच्छा व्यक्त की। मैंने गुप्तमुनि की कई बार परीक्षा ली तो वह प्रत्येक बार सही निकला। फिर उसको प्रथम चरण वाली मंत्रा दीक्षा दी। जब उस मुनि की आधीनता देखी, मेरे चरण पकड़कर सत्यलोक दर्शन की प्रार्थना की तो उसको उसी जगह (सतलोक) ले गया। प्रथम उसको मानसरोवर दिखाया। वहाँ पर सुंदर स्त्रिायां (कामिनि) थी जो एक समान सुंदर थी। उनके शरीर की शोभा ऐसी थी जैसे चार सूर्य शरीर के ऊपर लपेट रखे हों यानि उनके शरीर का प्रकाश चार सूर्यों के समान था। (मानसरोवर पर स्त्राी-पुरूष के शरीर का प्रकाश चार सूर्यों के प्रकाश के समान होता है। सत्यलोक में स्त्राी-पुरूष के शरीर का प्रकाश सोलह सूर्यांे के प्रकाश के समान हो जाता है।) वे वहाँ आनन्द से बातें कर रही थी। मानसरोवर के घाटों पर ऐसी सीढ़ी (पैड़ी=ैजंपत ब्ंेम) बनी थी जैसे उनके ऊपर चाँद और सूरज चिपका रखे हों। मानसरोवर के अमृत जल में ऊँची-ऊँची लहरें उठ रही थी जैसे सूर्य ही उस जल में मिल गया हो। ऐसा सुंदर रंग उस जल का है। वहाँ पर वे सर्व स्त्रिायां उस समय स्नान कर रही थी। स्नान करते समय उनका रूप और भी चमक रहा था। स्थान-स्थान पर अन्य स्त्रिायां गाने गा रही थी। यह दृश्य देखकर गुप्तमुनि का मन ललायित हो उठा। ऋषि का मन उनकी शोभा तथा मान सरोवर का नजारा देखकर व्याकुल हो गया। मानसरोवर के चारों ओर भांति-भांति की फुलवाड़ी थी। उनको देखकर लगता था जैसे पौधों पर उड़गन (तारे) तथा रवि (सूर्य) लगा रखे हों। यह शोभा देखकर गुप्तमुनि मेरे चरणों से चिपट गया और कहा कि हे साहब! अब मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा। ऐसे स्थान पर आपकी कृपा बिना फिर नहीं आ पाऊँगा।

सतगुरू वचन चैपाई (पृष्ठ 51 तथा 52)

कबीर परमेश्वर जी ने बताया कि हे धर्मदास! सतलोक देखकर जो स्थिति तुम्हारी हुई थी, वही स्थिति गुप्तमुनि की हो गई। मैंने उनसे कहा कि अभी तो आपको प्रथम नाम दीक्षा दी है। जब तक सारनाम प्राप्त नहीं होगा और उसकी साधना पूरी नहीं करोगे, तब तक यहाँ स्थाई विश्राम नहीं मिल सकता। अब आप अपने स्थान पर जाओ। फिर हम दोनों गुप्तमुनि के स्थान पर आ गए। गुप्तमुनि ने मेरे से (कबीर परमात्मा से) कहा कि आपके उस स्थान को मैं कैसे प्राप्त कर सकता हूँ। मुझे वह विधि बताने की कृपा करें। मैं उसकी प्राप्ति के लिए जो भी साधना तथा कुर्बानी करनी पड़ेगी, वही करूँगा। मैंने गुप्तमुनि को सत्यनाम की दीक्षा दी। अति आधीन देखकर उसको सारशब्द देकर सतलोक ले गया। वहाँ के हँसों (भक्तों) से मिलकर अति प्रसन्न हुआ। मेरा कोटि-कोटि धन्यवाद किया। कहा कि आपकी कृपा के बिना भगवन्! न तो सत्य ज्ञान मिल सकता है, न भगवान। आप ही करूणा के सागर हो। आप ही मोक्षदाता हो। आप ही वास्तव में पूर्ण ब्रह्म विधाता हो। सतलोक में आपके शरीर की शोभा देखकर दर्शन करके युगों की प्यास शांत हो गई है। इस युग में केवल एक हँस की मुक्ति कराई।

Sat Sahib