अघासुर युग का ज्ञान (प्रथम तरंग)
कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि हे धर्मदास! अब मैं तेरे को ऐसे लोक का वर्णन सुनाता हूँ जिसमें 13 युग हैं। वहाँ के प्राणियों को भी मैंने सत्यलोक की जानकारी दी। जिन प्राणियों ने मेरे ऊपर विश्वास किया, उनको भी नाम दीक्षा देकर पार किया। उनको दीक्षा देकर मोक्ष दिलाया। उनको सतलोक पहुँचाया।
अघासुर युग में पाँचवें ब्रह्माण्ड में गया। अघासुर युग के प्राणी अच्छे स्वभाव के होते हैं। उन्होंने शीघ्र मेरा ज्ञान स्वीकार किया। एक करोड़ प्राणियों को पार किया।
दूसरा बलभद्र युग
बलभद्र युग में चैदह लाख जीव पार किये। पाठकों से निवेदन है कि अम्बुसागर पृष्ठ 4 पर दोहों के पश्चात् ‘‘हंस वचन-चैपाई‘‘ से लेकर अंतिम पंक्ति, पृष्ठ 5 पूरा तथा पृष्ठ 6 पर बलभद्र युग सम्बंधी प्रकरण बनावटी है।
तीसरा द्धन्दर युग का वर्णन
एक जलरंग नामक शुभकर्मी हंस अपने पूर्व जन्मों की भक्ति कमाई से अछप द्वीप में रहता था। वह स्वयंभू गुरू भी बना था। उसने बहुत से जीव दीक्षा देकर शिष्य बनाए थे जो उसकी सेवा करते थे। जलरंग अपने शिष्यों के सिर पर हाथ रखकर दीक्षा देता था। दो शिष्य सफेद रंग के चंवरों से सेवा कर रहे थे। जलरंग सो रहा था। करोड़ों शिष्य उसको माथा टेक रहे थे। उसको नमन कर रहे थे। नीचे के ब्रह्माण्ड वाले शंखों युग बीत गए सोए हुए। मैंने उस दौरान अपना ज्ञान सुनाकर दो हजार जीव पार कर दिए। जब जलरंग ऋषि जागा तो मेरे से विवाद करने लगा। कहा कि मैं जो दीक्षा देता हूँ, वह श्रेष्ठ मंत्र है। मेरी आज्ञा के बिना कबीर यहाँ कैसे आ गया? फिर वह काल ब्रह्म को आदि पुरूष बताने लगा। कहा कि उसका कोई स्वरूप नहीं है। वह मणिपुर लोक में रहता है और बहुत-सी मिथ्या पहचान बताई। मैं वहाँ से चला गया। इस जलरंग को ‘‘पुरवन युग‘‘ में समझाया। पढ़ें आगे पुरवन युग का वर्णन:-