छठे धीर्यमाल (धीरमाल) युग का प्रकरण
अम्बुसागर पृष्ठ 20 पर:-
परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे धर्मदास! विश्व के प्राणियों को भूल लगी है। किसी के पास भी मूल नाम नहीं है। सब भक्ति कर रहे हैं। कहते हैं कि हम मोक्ष प्राप्त करेंगे। यदि मूलनाम यानि सारनाम प्राप्त होगा तो साधक का जन्म-मरण बचेगा अन्यथा करोड़ों नाम हैं, उनके जाप से मोक्ष नहीं है।
कबीर, देही नाम सब कोई जाना। नाम विदेह बिरले पहचाना।।
भावार्थ:- देहीनाम का अर्थ है शरीर धारी माता से गर्भ लेने वाले प्रभु ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश, गणेश आदि के नाम तो सब जाप करते हैं, परंतु विदेह (कबीर जी) जो माता-पिता के सम्पर्क से बने शरीर रहित (शुक्रम अकायम् अशनाविरम कविर्देव यजुर्वेद अध्याय 5 श्लोक 8 में बताया है।) के मंत्रा नाम को किसी बिरले ने पहचाना है। उस विदेह शब्द यानि सार शब्द बिन मोक्ष नहीं। मैं घर-घर जाकर समझाता हूँ। मैं विदेह शरीर से प्रकट होकर परमात्मा की महिमा यानि अपनी महिमा बताता हूँ, परंतु कोई ध्यान नहीं देता।
अम्बुसागर पृष्ठ 22 पर कहा है कि:-
अपने सुख को गुरू कहावैं, गुरू कह कह सब जीव भुलावैं।
गुरू शिष्य दोनों डहकावैं, बिना सार शब्द जो गुरू कहावैं।।
अथवा पाँच नाम नहीं जाना। नारियर मोरहीं करें विज्ञाना।।
भावार्थ है कि स्वार्थवश गुरू कहलाते हैं। सर्व जीवों को भ्रमित करते हैं। इनके पास सारशब्द तो है नहीं, तो शिष्य और गुरू दोनों नरक में जाएंगे। सार शब्द तो दूर की बात है। इनको वास्तविक पाँच नामों का भी ज्ञान नहीं। ये नारियर मोर (नारियल फोड़कर) दीक्षा देते फिर रहे हैं और विज्ञान यानि तत्त्वज्ञान का दावा करते हैं, वे झूठे हैं। हमने जीवों को समझाया है कि:-
कबीर लोकवेद की छोड़ो आशा। अगम ज्ञान का करो विश्वासा।।
सारनाम का मिले उपदेशा। सतगुरू काटै सकल कलेशा।।
आर्य पुरूष (उत्तम पुरूष) के दर्शन पावै। षोडश भानु रूप जहाँ आवै।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि लोकवेद यानि दंत कथा अर्थात् शास्त्राविरूद्ध ज्ञान की आशा छोड़कर अगम यानि आगे का तत्त्वज्ञान ग्रहण करो। जब सारनाम सतगुरू से प्राप्त होगा, तब जन्म-मरण का सब कष्ट समाप्त हो जाएगा।
गीता अध्याय 15 श्लोक 17:-
उत्तम पुरूषः तु अन्य परमात्मा इति उदाहृतः। यः लोकत्रायम् आविश्य विभर्ति अव्ययः ईश्वरः।।
भावार्थ:- उत्तम पुरूष यानि श्रेष्ठ प्रभु। आर्य का अर्थ श्रेष्ठ है। इसलिए कहा है कि जो आर्य पुरूष है। वह तो क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष से अन्य है जो परमात्मा कहा जाता है। जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है। वह वास्तव में अविनाशी परमेश्वर है। यहाँ पर भी कहा है कि सारनाम प्राप्त साधक आर्यपुरूष (श्रेष्ठ परमात्मा) का दर्शन करेगा और 16 सूर्यों जितने प्रकाश वाला शरीर सतलोक में प्राप्त करेगा। हे धर्मदास! मेरे यथार्थ ज्ञान से प्रभावित होकर एक लाख जीव पार हुए। धीरमाल युग की इतनी कथा है।