बारहवें हिंडोल युग का वर्णन
कबीर सागर के अध्याय अम्बुसागर के पृष्ठ 53 तथा 54 पर:-
परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि हे धर्मदास! अब मैं आप को हिंडोल युग (जो मध्य के ब्रह्माण्ड में चलता है) की कथा सुनाता हूँ। मैं सतलोक से चला। सतलोक में असँख्य द्वीप हैं। द्वीप-द्वीप में हँस विलास करते हैं यानि मोक्ष प्राप्त प्राणी आनन्द से रहते हैं। मैं हिंडोल युग के मध्य में गया। मैं घर-घर में ज्ञान सुनाता हुआ विचरण करता था। कोई भी जीव मेरे से बातें नहीं करता था। मैं उनको अमृत ज्ञान सुनाता था। वे मेरे से झगड़ा करते थे। धीरे-धीरे उनको समझाया। लाभ-लोभ देकर शरण में लिया। सात लाख जीवों ने दीक्षा ली। उनको सत्यलोक भेजा।
तेरहवें कंकवत युग का वर्णन
कबीर सागर के अध्याय अम्बुसागर पृष्ठ 55 पर:-
परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि हे धर्मदास! जब काल निरंजन को पता चला कि कोई सतलोक से कड़िहार (जीव मुक्त करने वाला सतपुरूष का भेजा अंश) आता है। उसने अनेकों जीवों को हमारे जाल से छुड़ा लिया है। कंकवत युग में काल ब्रह्म स्वयं एक गुप्त मुनि का रूप बनाकर बैठा तपस्या कर रहा था। करोड़ों जीवों को नाम देकर मूर्ख बनाए उनका गुरू बनकर बैठा था। गुप्त मुनि ने मेरे को देखकर पूछा कि आप इस लोक के निवासी नहीं हो। कहाँ से आए हो, कृपा बताऐं। तब मैंने बताया कि आपका पाताल लोक देखने आया हूँ। सत्यलोक से आया हूँ। गुप्त मुनि मध्य वाले ब्रह्माण्ड के पाताल लोक में था। मैंने (परमेश्वर कबीर जी ने) उसको समझाया कि तुम काल हो। तूने परमेश्वर के जीवों को सता रखा है, पाप का भागी हो रहा है। मैं जीवों को मोक्ष मार्ग बताने आया हूँ। यह सुनकर गुप्त मुनि क्रोधित हुआ और बोला कि क्या मंत्र देते हो, मुझे क्या समझ रखा है? मैं साठ खरब वर्ष तक की जानकारी रखता हूँ। प्रलय समय कहाँ रहेगा जिस समय सुर मुनि अठासी हजार नहीं रहेंगे, तब तुम कहाँ रहोगे कबीर जी? जिस समय उत्पत्ति (काल की प्रलय के पश्चात्) नहीं हुई थी, तब तुम कहाँ थे? कहाँ आपका शरीर था?
कबीर परमेश्वर (ज्ञानी) बचन
कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हे गुप्त मुनि! जब कुछ भी उत्पत्ति नहीं हुई थी। उस समय मैं एक कमल के ऊपर विराजमान था। मैंने ही सर्व रचना की है। मैंने ही सतलोक की रचना की है जो मन को आकर्षित करता है। मैंने ही षोडश (सोलह) अंश उत्पन्न किए थे। (अण्डे से तेरी उत्पत्ति भी मैंने की थी।) तूने तो मुझे पहचाना नहीं। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हे अहंकारी! अब बोल। यह बात सुनकर काल मेरे साथ युद्ध करने लगा। उसको मैंने शब्द शक्ति से घायल किया। वह उठकर भागा और अपने इक्कीसवें ब्रह्माण्ड में जाकर छिप गया। उसके पश्चात् उस मध्य के ब्रह्माण्ड में बने तीन लोकों में प्रलय हो गई।
इस कंकवत युग की अवधि पैंतीस लाख वर्ष होती है। मनुष्य की आयु एक लाख वर्ष होती है। मनुष्य के शरीर की ऊँचाई 80 हाथ यानि सैंकड़ों फुट होती है।