धर्मदास जी की वंश परंपरा के बारे में

धर्मदास जी की वंश परंपरा के बारे में

कबीर सागर के अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ के पृष्ठ 138 से 141 पर और ‘‘अमर मूल‘‘ पृष्ठ 243 पर:-

विवेचन:- अनुराग सागर पृष्ठ 140 पर परमात्मा ने बताया है कि चुड़ामणि (मुक्तामणि) तेरा बिंद पुत्रा है। उससे तेरी वंश गुरू गद्दी प्रारम्भ होगी। फिर छठी पीढ़ी तेरी आएगी। उसको ‘‘टकसारी पंथ‘‘ वाला नकली कबीर पंथी भ्रमित करेगा। वह छठी पीढ़ी वाला वास्तविक नाम तथा क्रिया छोड़कर टकसारी वाली (पान प्रवाना) दीक्षा लेगा। टकसारी पंथ में चल रही चैंका आरती करेगा जो हमारे वास्तविक भक्ति मार्ग से विपरीत होने से व्यर्थ होगा। बहुत जीवों को चैरासी लाख के चक्र में डालेगा। धर्मदास जी ने कहा है कि हे परमात्मा! आप एक और तो कह रहे थे कि तेरे बयालिस पीढ़ी वाले बिन्द यानि वंश वालों से सबका कल्याण होगा। अब कह रहे हो कि छठी पीढ़ी के पश्चात् काल वाली साधना चलेगी और मोक्ष मार्ग से भटक जाऐंगे। यह बात समझाऐं।

अनुराग सागर पृष्ठ 140 से ऊपर से वाणी पंक्ति नं. 1 से 12 तक:-

नाद बिंद जो पंथ चलावै। चुरामणि हंसन मुक्तावै।।1
धर्मदास तव बंश अज्ञाना। चीन्हैं नहीं अंश सहिदाना।।2
जस कछु आगे होई है भाई। सो चरित्रा तोहि कहों बुझाई।।3
छटे पीढ़ी बिन्द तव होई। भूले वंश बिन्दु तव सोई।।4
टकसारी को ले है पाना। अस तव बिन्द होय अज्ञाना।।5
चाल हमारी बंश तव झाड़ै। टकसारी का मत सब मांडै।।6
चैंका तैसे करै बनाई। बहुत जीव चैरासी जाई।।7
आपा हंस अधिक होया ताही। नाद पुत्रा से झगर कराही।।8
होवे दुर्मति वंश तुम्हारा। बचन बंश रोके बटपारा।।9

भावार्थ:- कबीर जी ने श्री चुड़ामणि पुत्रा सेठ धर्मदास जी को दीक्षा दी थी। इस कारण से चुड़ामणि को नाद तथा बिन्द दोनों नामों से संबोधित किया है। बिन्द तो धर्मदास का पुत्रा होने से कहा है। बताया है कि चुरामणि (चुड़ामणि) से तेरे वंश वालों की गुरू पीढ़ी प्रारम्भ होगी, परंतु जो कुछ आगे तेरे वंश गद्दी वालों के साथ काल का छल होगा, वह बताता हूँ, सुन। हे धर्मदास! तेरा वंश अज्ञानी है जो छठी पीढ़ी वाला गद्दीनशीन होगा, वह मेरे द्वारा बताया यथार्थ भक्ति मार्ग त्यागकर टकसारी वाले नकली कबीर पंथी महंत वाली भक्ति विधि ग्रहण करेगा, उसी तरह आरती चैका किया करेगा। इस प्रकार आगे आने वाली तेरी वंश परंपरा वाले महंतों से दीक्षा लेकर बहुत सारे जीव चैरासी लाख के चक्र में चले जाऐंगे। उनका जीवन नष्ट हो जाएगा। यदि कोई मेरे पंथ को नाद (शिष्य परंपरा) वाला आगे बढ़ाएगा। उसके साथ तेरे वंश गद्दी वाले झगड़ा करेंगे। हे धर्मदास! तेरा वंश दुर्मति को प्राप्त हो जाएगा और वह ठग होकर वचन (नाद) वाले पंथ को रोकेगा।

धर्मदास वचन

अब तो संशय भयो अधिकाई। निश्चय वचन करो मोहि साईं।।10
प्रथम आप वचन असभाषा निर संशय महां ब्यालीस राखा।।11
अब कहहु काल बश परि हैं। दोई बात किहि विधि निस्तरी है।।12

भावार्थ:- धर्मदास जी ने कबीर परमेश्वर से कहा कि अब तो मेरे को और अधिक शंका हो गई। मुझे विश्वास दिलाओ। पहले तो आपने ऐसे कहा कि तेरे वंश वालों से सर्व मानव का कल्याण होगा। अब आप कह रहे हो कि तेरी छठी पीढ़ी वाला भ्रमित होकर काल साधना करेगा-कराएगा। ये दोनों बातें कैसे सत्य हो सकती हैं?

कबीर वचन

परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि मैंने तेरे पुत्रा को दीक्षा देकर आगे दीक्षा देने का अधिकार दे दिया है। यदि आगे आने वाले गुरू गद्दी वाले सत्य साधना त्यागकर काल साधना करेंगे तो फिर मेरा क्या दोष है? फिर मैं तो अपना कोई नाद (शिष्य) भेजूंगा जो मेरे पंथ को बढ़ाएगा। यथार्थ भक्ति मार्ग से भ्रमित जगत को सत्य भक्ति मार्ग दृढ़ करेगा। जब-जब तेरे बिन्द (वंश) वालों को काल छलेगा। तब मैं सहायता करूँगा। मैं नाद हंस (शिष्य परंपरा) प्रकट करूँगा। नाद पुत्रा यानि शिष्य रूपी पुत्रा जो हमारा होगा, उससे मेरे पंथ का प्रकाश होगा। हे धर्मदास! अपने वचन वंश को समझा दो यानि चुड़ामणि को समझा दो कि वह सबको बताए कि कभी काल झटका दे जाए तो नाद वंश वाले से दीक्षा लेकर अपना मोक्ष करा लें।


विशेष:- वर्तमान में मेरे (रामपाल) द्वारा चलाया गया यह तेरहवां पंथ है। यह दास (रामपाल दास) अंतिम सतगुरू है। नामदान प्रकाश पुंज शरीर (मसमबजतवदपब ठवकल) यानि क्टक् से दिया जाएगा। अब के बाद नाद तथा बिंद का कोई चक्कर नहीं रहेगा। पहले भक्ति विधि गलत कर देते थे। जिस कारण से बिंद वाले पंथ भक्ति मार्ग को नष्ट कर देते थे। भक्ति विधि ठीक रहेगी तो साधकों का मोक्ष निश्चित है। अब तो क्टक् से दीक्षा दिलाई जाएगी। उसे वही दिलाएगा जिसको आदेश दिया जाएगा। वह चाहे बिन्द का हो, चाहे नाद का। कल्याण नाम दीक्षा से होना है। पंथ तो अब कोई भी नष्ट नहीं कर सकेगा। कलयुग में सत्य साधना चलेगी। विश्व का कल्याण होगा। जो अहंकारी व काल प्रेरित है, वे अपना कर्म खराब करते रहेंगे। काल के जाल में रह जाऐंगे। वे अपनी महिमा बनाने के लिए मेरे ज्ञान व विधान में त्राुटि निकालकर अपने अज्ञान का परिचय देंगे। मेरे भक्त ज्ञानवान हो चुके हैं। उनके काल जाल में नहीं आऐंगे।

अध्याय ‘‘अनुराग सागर‘‘ पर पृष्ठ 141 पर लिखा है:-

चारहूं युग देखो संवादा। पंथ उजागर कीन्हो नादा।।
कहाँ निर्गुण कहाँ सर्गुण भाई। नाद बिना नहिं चलै पंथाई।।
धर्मनि नाद पुत्रा तुम मोरा। ताते दीन्ह मुक्ति का डोरा।।
याह विध हम बयालीस तारैं। जब गिरै वह तबै उभारै।।

भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट कर दिया है कि नाद पुत्रा किसे कहते हैं? कहा कि जैसे धर्मदास तुम मेरे वचन के पुत्रा हो यानि शिष्य रूप में नाद के पुत्रा हो। ऐसे जब नाद वाला मेरा अंश प्रकट होगा, तब यदि तेरे बिन्द वाले भी उस नाद वाले से दीक्षा लेकर नाम जाप करेंगे तो तेरे बिन्द वाले भी पार हो जाऐंगे। इस प्रकार तेरे बयालीस पीढ़ी वालों को पार करूँगा। यदि तेरा बिन्द मेरे नाद के वचन नहीं मानेगा, देखते ही देखते उन जीवों को काल खा जाएगा। कबीर जी ने स्पष्ट कर दिया है कि:- 

कहाँ नाद कहाँ बिन्द ने भाई। नाम भक्ति बिन लोक न जाई।।

भावार्थ:- चाहे कोई नाद वाला है, चाहे बिन्द वाला है। यदि नाम की वास्तविक भक्ति है तो सतलोक जा सकेगा।

बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाण

कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी’’ में पृष्ठ 132 पर स्पष्ट किया है कि कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि हे धर्मदास! तू हमारा अंश है। मैं तेरे को एक गुप्त वस्तु का भेद बताता हूँ जो मैंने गुप्त रखी है। सात सुरति तो उत्पत्ति करने वाली हैं। तुम आठवीं सुरति हो तथा नौतम (नौंवी) सुरति मैंने गुप्त छुपाई है। नौतम सुरति मेरा निज वचन है यानि उसको पूर्ण मोक्ष मंत्रा का अधिकार है जिससे दीक्षा लेने के पश्चात् काल चोर उस जीव को रोक नहीं सकता। धर्मदास जी ने प्रार्थना की कि हे परमात्मा! मुझे वह वचन बताओ जिससे जीव फिर से जन्म-मरण के चक्र में न आए। परमात्मा कबीर जी ने कहा कि आठ बूँद यानि सतलोक में स्त्राी-पुरूष से उत्पन्न हंसों से जीव मुक्त कराने की योजना बनाई थी। तुम आठवीं बूँद हो। परंतु सबको काल ने भ्रमित कर दिया। अब नौंवी बूँद यानि नौतम सुरति से तुम सहित आठों की मुक्ति कराई जाएगी। नौतम सुरति बूँद प्रकाशा यानि नौंवे हंस का जन्म संसार में बूँद यानि माता-पिता से होगा। उस एक बूँद से तेरे बीयालिस बूँद वाले हंस पार कर दिए यानि आशीर्वाद दे दिया है, ऐसा होगा।

वाणी:- वंश बीयालिस बून्द तुम्हारा। सो मैं एक बून्द (वचन) से तारा।(कबीर बानी पृष्ठ 132.133 पर)

अनुराग सागर में पृष्ठ 142 पर:-

बिन्द तुम्हारा नाद संग जावै। देखत दूत मन ही पछतावै।।

भावार्थ:- हे धर्मदास! तेरा वंश नाद वाले के साथ जाएगा यानि नाद वाले से दीक्षा लेगा तो काल के दूत निकट नहीं आऐंगे। वे भाग जाऐंगे, बहुत पश्चाताप करेंगे कि यह तो पार होगा। भावार्थ है कि परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट कर दिया है कि धर्मदास जी की छठी पीढ़ी के पश्चात् काल की साधना चलेगी। टकसारी पंथ (जो नकली बारह कबीर पंथों में से एक है) वाली भक्ति विधि आरती चैंका, उसी नाम वाला मंत्रा (अजर नाम, अमर नाम, पाताले सप्त सिंधु नाम आदि-आदि) दीक्षा में दिया जाता है। जो दामाखेड़ा (छत्तीसगढ़) वाले महंत जी दीक्षा दे रहे हैं, वह टकसारी वाली साधना है जो व्यर्थ है।

कबीर सागर के अध्याय ‘‘अमर मूल‘‘ के पृष्ठ 242-243 पर दामाखेड़ा वालों ने मिलावट करके लिखी वाणी में कहा है कि सातवीं पीढ़ी वाला तो अभिमानवश विचलित हो जाएगा, परंतु आठवीं पीढ़ी से पंथ का प्रकाश हो जाएगा, परंतु परमात्मा ने वाणी में स्पष्ट किया है कि:-

जो तेरी वंश पीढ़ी वाले गुरू हैं, उनका नाम तो स्वर्ग तक है। आठवां भी काल अपना दूत भेजेगा। इस प्रकार काल बहुत छल करेगा। तुम्हारे वंश का यह लेखा बता दिया है कि बिना सारशब्द के मुक्ति नहीं हो सकती। सारशब्द केवल धर्मदास जी को दिया था और धर्मदास जी से प्रतिज्ञा करा ली कि यह सारशब्द किसी को नहीं देना। अपने वंश को भी नहीं बताना। हे धर्मदास! तेरे को लाख दुहाई, यह सारशब्द तेरे अतिरिक्त किसी के पास नहीं जाना चाहिए। यदि यह सार शब्द किसी के हाथ लग गया तो वह अन् अधिकारी व्यक्ति सबको भ्रमित कर देगा। सारशब्द को उस समय तक छुपाना है, जब तक 12 पंथों को मिटा न दिया जाए। 12वां (बारहवां) पंथ संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर, हरियाणा वाले) का है जिनका जन्म विक्रमी संवत् 1774 (सन् ई. 1717) में हुआ। उनको परमेश्वर कबीर जी धर्मदास जी की तरह मिले थे। 
उनको भी यही आदेश दिया था कि जब तक कलयुग 5505 वर्ष नहीं बीत जाता, तब तक मूल ज्ञान और मूल शब्द (मूल मंत्रा) यानि सार शब्द छुपा कर रखना है। तो वह सार शब्द धर्मदास जी की वंश गद्दी वालों के पास कहाँ से आ गया? वह सार शब्द (मूल शब्द) तथा मूल ज्ञान (तत्त्वज्ञान) मेरे (रामपाल दास के) पास है। विश्व में अन्य किसी के पास नहीं है। 

प्रमाण:- कबीर सागर के अध्याय ‘‘कबीर बानी‘‘ पृष्ठ 136-137 तथा कबीर चरित्रा बोध पृष्ठ 1835ए 1870 पर तथा ‘‘जीव धर्म बोध‘‘ पृष्ठ 1937 पर है।

कलयुग सन् 1997 को 5505 वर्ष पूरा हो जाता है। सन् 1997 को मुझ दास को परमेश्वर कबीर के दर्शन दिन के 10 बजे हुए थे। सार शब्द (मूल शब्द) तथा मूल ज्ञान को सार्वजनिक करने का सही समय बताकर अन्तध्र्यान हो गये थे। उसी समय से गुरू जी की आज्ञा से सार शब्द अनुयाईयों को प्रदान किया जा रहा है। सबका कल्याण होगा जो मेरे से नाम दीक्षा लेकर मन लगाकर मर्यादा में रहकर भक्ति करेगा, उसका मोक्ष निश्चित है।

Sat Sahib