अध्याय ‘‘मोहम्मद बोध’’ का सारांश
(मुसलमान धर्म की जानकारी)
कबीर सागर में ‘‘मोहम्मद बोध‘‘ 14वां अध्याय पृष्ठ 6 पर है।
धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से मुसलमान धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद को ज्ञान समझाने के बारे में प्रश्न किया कि हे बन्दी छोड़! क्या आप नबी मोहम्मद से भी मिले थे? उसने आपकी शरण ली या नहीं? यह जानने की मेरी इच्छा है। आप सबके मालिक हैं, जानीजान हैं। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को मोहम्मद धर्म की जानकारी इस प्रकार दी:- (लेखक रामपाल दास के शब्दों में।)
कबीर परमेश्वर जी ने अपनी प्यारी आत्मा धर्मदास जी को मुसलमान धर्म की जानकारी बताई जो इस प्रकार है। {पाठकों से निवेदन है कि कबीर सागर से बहुत सा प्रकरण कबीर पंथियों ने निकाल रखा है। कारण यह रहा है कि वे उस विवरण को समझ नहीं सके। उसको अपनी अल्पबुद्धि के अनुसार गलत मानकर निकाल दिया। मेरे पास एक बहुत पुराना कबीर सागर है। उसके आधार से तथा परमेश्वर कबीर जी ने अपने ज्ञान को संत गरीबदास जी को सन् 1727 (विक्रमी संवत् 1784) में प्रदान किया। संत गरीबदास जी उस समय 10 वर्ष के बालक थे। उनको कबीर परमेश्वर जी सत्यलोक लेकर गए। फिर वापिस छोड़ा। उसके पश्चात् संत गरीबदास जी ने आँखों देखा वर्णन किया। फिर मैंने (रामपाल दास) ने सर्व धर्म ग्रन्थों का इस दृष्टिकोण से अध्ययन किया कि क्या यह प्रकरण पुरातन धर्मग्रन्थों में भी है। यदि पुराने धर्मग्रन्थों (पवित्रा वेदों, पवित्रा गीता, पवित्रा पुराण, पवित्रा कुरान तथा पवित्रा बाईबल जो तीन पुस्तकों का योग है - तौरत, जबूर, इंजिल) में पवित्रा कबीर सागर वाला प्रकरण है तो संसार की भोली-भाली और विभिन्न पंथों में धर्म के नाम से बंटी जनता को एक सूत्रा में बाँधा जा सकता है। अध्ययन से पता चला कि सर्व धर्मग्रन्थ जहाँ तक यानि जिस मंजिल तक का ज्ञान उनमें है, वह कबीर सागर से मिलता है। कबीर सागर में उन ग्रन्थों से आगे का ज्ञान भी है।
कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी को बताया कि हे धर्मदास! मुसलमानों का मानना है कि बाबा आदम से मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है। यह इनका अधूरा ज्ञान है। आदम जी वाला जीव पूर्व जन्म में ऋषभ देव राजा था जिसको जैन धर्म का प्रवर्तक व प्रथम तीर्थकंर माना जाता है। मैंने (परमेश्वर कबीर जी ने) नबी मोहम्मद को यही समझाया था कि आप बाबा आदम को अपना प्रथम पुरूष मानते हो, उसी की संतान आप अपने को मानते हो। जिस समय बाबा आदम नहीं था। उस समय परमात्मा तो था। यह ज्ञान पवित्रा बाईबल में उत्पत्ति ग्रन्थ में लिखा है। नबी मोहम्मद जी से पूर्व बाबा आदम की संतान में लाखों पैगम्बर हुए माने जाते हैं जिनमें से 1) दाऊद 2) मूसा 3) ईशा जी। दाऊद जी को जबूर किताब मिली, मूसा जी को तौरेत तथा ईशा जी को इंजिल पुस्तक मिली। प्रत्येक को एक ही बार में उपरोक्त पुस्तकें मिली। नबी मोहम्मद जी को कुरान शरीफ किताब मिली जो कई चरणों में कई प्रकार से प्राप्त हुई है।
जब किसी पंथ की शुरूआत होती है, किसी समुदाय के व्यक्ति द्वारा उसी समुदाय से होती है। कारण यह होता है कि परमात्मा किसी महापुरूष को इसी उद्देश्य से संसार में भेजता है कि वह मनुष्यों में फैली बुराई, कुरीतियों, शास्त्रा विरूद्ध साधना को छुड़ाकर स्वच्छ तथा शास्त्राविधि अनुसार भक्ति करने वाले भक्त तैयार करे। जिस कारण से उसको अपने ही समुदाय से शुरूआत करनी होती है। रूढ़िवादी तथा स्वार्थी पंथी गुरू उस सच्चे संत का जनता को भ्रमित करके बहुत विरोध कराते हैं। उसका जीना हराम कर देते हैं। परंतु वह प्रभु का भेजा हुआ अंश होता है। इस संसार में दो शक्ति अपना-अपना कार्य कर रही हैं।
एक काल ब्रह्म है जिसको ज्योति निरंजन भी कहते हैं। वेदांती उसको ब्रह्म कहते हैं और निराकार मानते हैं। मुसलमान उसी को बेचुन (निराकार) अल्लाह कहते हैं।
दूसरी शक्ति सत्य पुरूष है जिसको गीता में परम अक्षर पुरूष, सच्चिदानंद घन ब्रह्म, दिव्य परमपुरूष, तत् ब्रह्म कहा है। (गीता अध्याय 7 श्लोक 29, अध्याय 8 श्लोक 3, अध्याय 8 श्लोक 8, 9, 10)
काल ब्रह्म का राज्य इक्कीस ब्रह्माण्ड का क्षेत्रा है जिसको काल लोक कहते हैं। काल ब्रह्म को एक लाख मानव शरीरधारी जीव खाने का शाॅप लगा है। जिस कारण से यह अधूरा अध्यात्मिक ज्ञान तथा साथ में बुराई जैसे-शराब, माँस, तम्बाकू का सेवन करने तथा धाम-तीर्थ आदि पूजने का भी ज्ञान देता है। जिस कारण से साधक साधना करते हुए अन्य विषय-विकार तथा शास्त्रा विरूद्ध साधना करके अपना जीवन व्यर्थ करते हैं और काल ब्रह्म के जाल में ही रह जाते हैं। काल ब्रह्म की यही कोशिश है। दूसरी शक्ति सत्य पुरूष है। असँख्य ब्रह्माण्डों में जितने भी प्राणी हैं, ये सब सत्य पुरूष जी की आत्माऐं हैं जो सत्यलोक में रहते थे। वहाँ से अपनी अल्पबुद्धि के कारण काल ब्रह्म के साथ यहाँ आ गए। वहाँ पर सत्यलोक में प्रत्येक जीव का अपना घर-परिवार सर्व सामान था। प्रत्येक को काल ब्रह्म के देवताओं से भी अधिक सुविधाऐं थी। कोई वृद्ध नहीं होता था, कोई मरता नहीं था। सृष्टि ऐसी ही है। यह पाँच तत्त्व से बनी है। वहाँ एक नूर तत्त्व से बनी सृष्टि है। यह मिट्टी से निर्मित जानो, वहाँ की सोने से बनी मानो। यह नाशवान है। वह अविनाशी है। सत्य पुरूष स्वयं कबीर जी हैं। उनके शरीर का नाम कबीर है। वेदों में कविर्देव कहते हैं। कुरान में अल्लाह अकबर, अल्लाह कबीर कहते हैं। परमेश्वर कबीर जी चाहते हैं कि सर्व जीव मेरे ज्ञान को समझें और मेरे द्वारा बताई भक्ति साधना करें। सर्व बुराई त्यागकर निर्मल होकर सत्यलोक में चले जाएंगे। वहाँ इनको कोई कष्ट नहीं है। न मरण है, न वृद्ध अवस्था। सर्व खाद्य पदार्थ सदा उपलब्ध हैं। कोई डाकू-बदमाश, चोर आदि नहीं है। स्त्राी-बच्चे, पुरूष सब ऐसी ही सृष्टि है। काल ब्रह्म चाहता है कि सर्व प्राणी मेरे जाल में फंसे रहें। जन्मते-मरते रहें। बुराई करके पापग्रस्त होकर जन्मते-मरते रहें। किसी को सत्यलोक तथा सत्य पुरूष का ज्ञान न हो। मेरे तक ज्ञान को अंतिम मानें। इसलिए काल ब्रह्म परमेश्वर कबीर जी की आत्माओं में से अच्छी आत्मा को अपना पैगम्बर यानि संदेशवाहक ज्ञान देने के लिए भक्ति दूत बनाकर भेजता है। अपने काल जाल में रखने वाला ज्ञान देता है। उसी ने बाबा आदम, हजरत दाऊद, हजरत मूसा, हजरत ईशा, हजरत मोहम्मद को तथा अवतारों राम, कृष्ण, आदि शंकराचार्य, ऋषि-मुनियों द्वारा अपना प्रचार करा रखा है। सत्य पुरूष प्रत्येक युग के प्रारम्भ में स्वयं आते हैं। अपनी लीला करते हैं। अपना यथार्थ ज्ञान स्वयं प्रचार करते हैं। उसकी पुस्तकें बन जाती हैं। फिर परमेश्वर अपना पैगम्बर यानि भक्ति प्रचारक दूत भेजते हैं। सत्य पुरूष के पैगम्बर से पहले काल ब्रह्म अपने पैगम्बर भेज देता है। उनके द्वारा जनता को असत्य ज्ञान तथा अन्य बुराइयों पर आरूढ़ कर देता है। सर्व मानव समाज अपनी-अपनी साधना तथा अध्यात्म ज्ञान तथा परंपरा को सर्वश्रेष्ठ मानकर अडिग हो जाता है।
जब सत्यपुरूष आप आते हैं या अपना अंश भेजते हैं, तब सब मानव उनके द्वारा बताए गए सत्य ज्ञान को असत्य मानकर उनका घोर विरोध करते हैं। हे धर्मदास! आप यह प्रत्यक्ष देख भी रहे हो। आप भी तो काल के ज्ञान तथा साधना के ऊपर अडिग थे। ऐसे ही अनेकों श्रद्धालु काल प्रभु को दयाल, कृपावान प्रभु मानकर भक्ति कर रहे होते हैं। काल ब्रह्म भी परमात्मा की अच्छी-सच्ची निष्ठावान आत्माओं को अपना पैगम्बर बनाता है। बाबा आदम की संतान में 1 लाख 80 हजार पैगम्बर, हिन्दू धर्म के 88 हजार ऋषि तथा अन्य प्रचारक, ये अच्छी तथा सच्ची निष्ठा वाले थे जिनको काल ब्रह्म ने अपना प्रचारक बनाया। ऋषियों ने पवित्रा वेदों, पवित्रा श्रीमद्भगवत गीता तथा पुराणों के आधार से स्वयं भी साधना की तथा अपने अनुयाईयों को भी वही साधना करने को कहा। वेदों तथा गीता में ज्ञान तो श्रेष्ठ है, परंतु अधूरा है। पुराण जो सँख्या में 18 हैं, ये ऋषियों का अपना अनुभव तथा कुछ-कुछ वेद ज्ञान है तथा देवी-देवताओं की जीवनी लिखी है। चारों वेदों का ज्ञान काल ब्रह्म ने दिया। चारों वेदों का सारांश अर्थात् संक्षिप्त रूप श्रीमद्भवगत गीता है। चारों वेदों का ज्ञान काल ब्रह्म ने सर्व प्रथम दिया था। उसके पश्चात् उसी काल ब्रह्म ने चार किताबों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरान शरीफ) का ज्ञान दिया है। भक्ति का मार्ग वेदों तथा गीता में बताया गया है। उसके पश्चात् दाऊद जी को जबूर किताब वाला ज्ञान दिया। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति का आंशिक ज्ञान दिया। इसके पश्चात् मूसा जी को तौरेत पुस्तक वाला ज्ञान दिया तथा इसके पश्चात् ईसा जी को इंजिल पुस्तक वाला ज्ञान दिया। फिर बाद में कुरान शरीफ वाला ज्ञान मोहम्मद जी को दिया। वेदों में भक्ति तथा भगवान का ज्ञान बताया है। वह ज्ञान अन्य पुस्तकों जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरान शरीफ में दोहराना उचित न जानकर सामान्य ज्ञान दिया है। इनमें कुछ वेद ज्ञान है तथा कुरान शरीफ में लगभग 40 प्रतिशत ज्ञान बाईबल वाला है। (बाईबल ग्रन्थ में तीन पुस्तक इकट्ठी की गई हैं, जबूर, तौरेत तथा इंजिल) मूसा जी के अनुयाई यहूदी कहलाते हैं। ईशा जी के अनुयाई ईसाई कहे जाते हैं। मोहम्मद जी के अनुयाई मुसलमान कहे जाते हैं। ये सब बाबा आदम को अपना प्रथम पुरूष अर्थात् सब आदमियों का पिता मानते हैं। ये अब मानते हैं कि जब तक सृष्टि चलेगी, तब तक सर्व मानव मरते रहेंगे। उनको कब्र में दबाते चलो। जिस समय कयामत (प्रलय) आएगी, उस समय सब व्यक्ति (स्त्राी-पुरूष) कब्रों से निकालकर मुर्दे जीवित किए जाएंगे। उनके कर्मों का हिसाब होगा जिन्होंने चारों कतेबों (पुस्तकों) में लिए अल्लाह के आदेशानुसार कर्म किए हैं। वे जन्नत (स्वर्ग) में रहेंगे। जिन्होंने चारों पुस्तकों (जबूर, तौरेत, इंजिल तथा कुरान शरीफ) के आदेश का पालन नहीं किया। वे सदा दोजिख (नरक) की आग में
जलेंगे। इसके पश्चात् यहाँ की सृष्टि सदा के लिए नष्ट हो जाएगी। मुसलमानों का मानना है कि कयामत से पहले केवल निराकार प्रभु था। वर्तमान में जन्नत में कोई नहीं है। न ही दोजख में कोई है। मुसलमान नहीं मानते कि पुनर्जन्म होता है। वे केवल एक बार जन्म, फिर मरण, उसके पश्चात् कब्र में, फिर जब सृष्टि का विनाश होगा, तब कब्र से निकालकर कर्मानुसार स्वर्ग तथा नरक, फिर थ्नसस ेजवच यानि सृष्टि क्रम का पूर्ण विराम रहेगा। यदि उपरोक्त बात सत्य है तो हजरत मुहम्मद जी ने जन्नत में बाबा आदम, मुसा, ईशा, दाऊद आदि की मण्डली को देखा। उनको भी कब्र में रहना चाहिए था। इससे आप मुसलमानों का विधान गलत सिद्ध हुआ।
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी से कहा कि हे धर्मदास! यह विचार तथा ज्ञान गलत है। वास्तविकता यह है कि जन्म-मरण, पुनर्जन्म उस समय तक चलता रहता है, जब तक जीव मेरी (कबीर जी की) शरण में नहीं आता। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि मोहम्मद की जीवनी इस प्रकार है। ईशा मसीह के लगभग 600 वर्ष पश्चात् हजरत मोहम्मद जी का जन्म यहूदी समुदाय में हुआ। उस समय आध्यात्मिक अज्ञानता पूरी तरफ फैल चुकी थी। उस समुदाय के सब व्यक्ति मूर्ति पूजक थे। मोहम्मद जी के पिता का नाम अबदुल्ला था। दादा जी का नाम अब्दुल मुअतिल था। मोहम्मद का जन्म एक बिल्ला रहमान नामक फकीर (साधु) के सूक्ष्म मिलन से रहे गर्भ से हुआ था। इसको मोहम्मद की माता ने स्वपन दोष माना था। {इसी प्रकार ईशा जी की माता मर्यम को भी गर्भ एक फरिश्ते से रहा था। मर्यम ने भी इसे स्वपन दोष माना था, परंतु ईशा के पिता युसुफ ने इसे गलत कर्म मानकर मर्यम को तलाक देना चाहा था। उसी समय एक फरिश्ता (देवता) प्रकट हुआ। उसने कहा कि मर्यम को गर्भ मेरे से रहा है। इसको कुछ पता नहीं है। यह प्रभु की ओर से भेजा गया नबी है। संसार को भक्ति संदेश देने संसार में जन्म लेगा। युसुफ ने देवता की बात मानकर मर्यम को आदर के साथ रखा। महाभारत में भी प्रमाण है कि धृतराष्ट्र तथा पाण्डव दो भाई थे। राजा शान्तनु के पुत्रा थे। पाण्डव छोटा था। वह रोगी था, संतानोत्पत्ति में असमर्थ था। उसकी दो पत्नियाँ थी। एक कुंती व दूसरी मादरी। कुंती ने तीन पुत्रों को जन्म दिया जो तीन फरिश्तों (देवताओं) से गर्भ रहा था। युधिष्ठर का जन्म धर्मराज द्वारा कुंती से मिलन से हुआ था। अर्जुन का जन्म कुंती से इन्द्र देवता के भोग-विलास से हुआ था। भीम का जन्म पवन देवता द्वारा कुंती से मिलन करने से हुआ था। नकुल का जन्म स्रत देवता से मादरी से मिलन से तथा सहदेव का जन्म नासत्य देवता से मादरी से मिलन से हुआ था। पुराणों में कथा है कि एक समय सूर्य देव की पत्नी घर छोड़कर जंगल में चली गई। कारण यह था कि सूर्य देव के अधिक भोग-विलास (ैमग) से तंग आकर अपनी नौकरानी को अपने जैसे स्वरूप का आशीर्वाद दिया और उससे कहा कि तू मेरा भेद मत देना। मैं अपने पिता विश्वकर्मा के घर जाती हूँ। ऐसा कहकर उषा चली गई। नौकरानी का स्वरूप उषा जैसा हो गया। जब सूर्य देव को पता चला तो वह विश्वकर्मा के घर गए। विश्वकर्मा ने अपनी पुत्राी को वापिस घर जाने पर जोर दिया तो उषा जंगल में घोड़ी का रूप बनाकर तप करने लगी। उसने सोचा था कि यदि स्त्राी रूप में तप करूँगी तो कोई इज्जत का दुश्मन हो जाएगा। सूर्य को पता चला कि उषा तो यहाँ से भी चली गई है तो ध्यान से दिव्य दृष्टि से देखा तो उषा घोड़ी रूप में तप कर रही है। सूर्य देव ने घोड़े का रूप धारण किया और उषा से भोग करने की तड़फ हुई। घोड़ी रूप में उषा ने घोड़े को गलत नीयत से अपनी ओर आता देख अपने पृष्ठ भाग (इन्द्री) को बचाने के लिए घोड़े की तरफ मुख करके साथ-साथ घूमती रही। वासनावश सूर्य रूपी घोड़ा मुख में ही भोग करने लगा। उसकी बीज शक्ति पृथ्वी के ऊपर गिर गई। उससे दो लड़के उत्पन्न हुए। वे अश्वनी (घोड़ी) कुमार कहलाए। उनका नाम स्रत तथा नासत्य रखा। वे अश्वनी कुमार देवता कहे जाते हैं।} अबदुल्ला जी अपनी पत्नी को ससुराल से लेकर आए।
{सूक्ष्मवेद में लिखा है कि:- ‘‘मुसलमान बिस्तार बिल्ला का। नौज उदर घर संजम जाका।।
जाके भोग मोहम्मद आया। जिसने यह धर्म चलाया।।
कुछ महीने बाद अबदुल्ला जी कुछ व्यापारियों के साथ रोजगार के लिए गए तो बीमार होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए। उस समय मोहम्मद जी माता के गर्भ में थे। बाद में मोहम्मद जी का जन्म हुआ। छः वर्ष के हुए तो माता जी अपने पति की कब्र देखने के लिए गाँव के कुछ स्त्राी-पुरूषों के साथ गई थी तो उनकी मृत्यु भी रास्ते में हो गई। नबी मोहम्मद अनाथ हो गए। दादा पालन-पोषण करने लगा। जब आठ वर्ष के हुए तो दादा की भी मृत्यु हो गई। पूर्ण रूप से अनाथ हो गए। जैसे-तैसे 25 वर्ष के हुए, तब एक 40 वर्ष की खदिजा नामक विधवा से विवाह हुआ। {खदिजा का दो बार बड़े धनवान घरानों में विवाह हुआ था। दोनों की मृत्यु हो जाने के कारण उनकी सब संपत्ति खदिजा के पास ही थी। वह बहुत रईस थी।} खदिजा से मोहम्मद जी के तीन पुत्रा (कासिम, तयब, ताहिर) तथा चार पुत्राी हुई। जिस समय मोहम्मद जी 40 वर्ष के हुए तो उनको जबरील नामक फरिश्ता मिला और कुरान शरीफ का ज्ञान देना प्रारम्भ किया। वे नबी बने। मुसलमानों का मानना है कि हजरत मोहम्मद जी को कुरान शरीफ का ज्ञान सीधा बेचून (निराकार) अल्लाह की ओर से भेजा गया है। उसमें बिना किसी मिलावट किए जबरील फरिश्ते ने मोहम्मद जी को बताया है। कभी-कभी फरिश्ता मोहम्मद के शरीर में प्रवेश करके बोलता था। मोहम्मद जी चद्दर मुख पर ढ़ककर लेट जाते थे। ऊपर से अल्लाह के पास से वयह (संदेश) आती थी। उस ज्ञान को मोहम्मद जी मुख ढ़के-ढ़के बोलते थे, लिखी जाती थी। इस तरह आने वाला संदेश बहुत दुःखदायी होता था। मोहम्मद जी का सारा शरीर कांपता था। वास्तव में फरिश्ता अंदर प्रवेश करके बोलता था। कभी-कभी काल ब्रह्म भी स्वयं प्रवेश करके बोलता था। (काल ब्रह्म ने कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके गीता वाला ज्ञान बोला था।) एक दिन हजरत मोहम्मद जी ने अपनी ऊपर (स्वर्ग) की यात्रा का वर्णन बताया। एक गधे जैसा जानवर (जिसे बुराक नाम दिया) लेकर जबरील देवता आया और मोहम्मद जी को बैठाकर ऊपर के सातों आसमानों की सैर कराई। ऊपर जाकर एक मैराज यानि सीढ़ी ऊपर से नीचे की ओर खुली, उसके ऊपर बुराक चढ़ा। मोहम्मद जी भी उस पर बैठे थे। जबरील नीचे रहा। फिर एक पक्षी आया। उस पर बैठकर मोहम्मद जी अल्लाह के पास गए। पक्षी भी चला गया। मोहम्मद जी ने अल्लाह से सीधी वार्ता की। अल्लाह पर्दे के पीछे से बोला और 50 नमाज प्रतिदिन करने को कहा। फिर मूसा जी के कहने से वापिस जाकर 5 नमाज करने की आज्ञा अल्लाह से लेकर आए जो वर्तमान में मुसलमान करते हैं। हजरत मोहम्मद जी ने बताया कि मैंने जन्नत (स्वर्ग) में सब आदमियों के पिता बाबा आदम जी को देखा व उनके दांई और स्वर्ग था। स्वर्ग में उसकी नेक संतान थी जिन्होंने अल्लाह के आदेशानुसार भक्ति की थी। वे स्वर्ग (जन्नत) में सुखी थे। बाबा आदम के बांई ओर दोजख (नरक) था। उसमें बाबा आदम की निकम्मी संतान कष्ट भोग रही थी जिन्होंने अल्लाह की कतेबों के आदेशानुसार भक्ति न करके जीवन व्यर्थ किया था। हजरत मोहम्मद जी ने बताया कि बाबा आदम बांई ओर नरक में अपनी संतान को नरक में कष्ट उठाते देखकर रो रहे थे और दांई ओर स्वर्ग में नेक संतान को देखकर हँस रहे थे। जबरील देवता ने बताया कि ये बाबा आदम हैं। मोहम्मद साहब ने बताया कि ऊपर के लोकों में मुझे हजरत दाऊद, हजरत मूसा तथा हजरत ईशा जी तथा अन्य नबियों की जमात (मण्डली) मिली। मैंने उनको नमाज पढ़ाई। फिर नीचे लाकर बुराक छोड़कर चला गया। हजरत मुहम्मद जी के इस आँखों देखे प्रकरण को मुसलमान सत्य मानते हैं। इसलिए आपका वह सिद्धांत गलत सिद्ध हुआ कि मृत्यु के पश्चात् प्रलय (कयामत) तक बाबा आदम, हजरत दाऊद, मूसा, ईशा आदि-आदि को जन्नत की बजाय कब्रों में होना चाहिए था जिनको हजरत मुहम्मद जी ने जन्नत में देखा तथा बाबा आदम की संतान भी कब्रों में रहनी चाहिए थी जो ऊपर स्वर्ग (जन्नत) तथा नरक (दोजख) में हजरत मुहम्मद जी ने देखी थी। आपका सिद्धांत गलत है। हजरत मोहम्मद जी को खदिजा जी से तीन पुत्रा तथा चार बेटी प्राप्त हुई थी। तीनों बेटे मोहम्मद जी की आँखों के सामने अल्लाह को प्यारे हुए।