पवित्र बाईबल में साकार पूर्ण परमात्मा के विषय में वर्णन - मोहम्मद बोध

पवित्र बाईबल में साकार पूर्ण परमात्मा के विषय में वर्णन

उत्पत्ति ग्रन्थ, पृष्ठ नं. 1 से 3

परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टि रची तथा सातवें दिन विश्राम किया, प्रभु ने पाँच दिन तक अन्य रचना की, फिर छटवें दिन ईश्वर ने कहा कि हम मनुष्य को अपना ही स्वरूप बनायेंगे। फिर परमेश्वर ने मनुष्य को अपना ही स्वरूप बनाया, नर-नारी करके उसकी सृष्टि की। फिर ईश्वर ने मनुष्यों के खाने के लिए केवल फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए। जो तुम्हारे भोजन के लिए हैं। छः दिन में पूरा कार्य करके परमेश्वर ऊपर तख्त पर जा विराजा अर्थात् विश्राम किया। ईश्वर ने प्रथम आदम बनाया फिर उसकी पसली निकाल कर नारी (हव्वा) बनाई तथा दोनों को एक वाटिका में छोड़कर तख्त पर जा बैठे। फिर पृष्ठ नं. 8 पर लिखा है कि ईश्वर ने मनुष्य जाति के खाने के लिए फलदार पेड़ तथा बीजदार पौधे बनाए और वन प्राणियों के लिए घास व पौधे बनाए। भगवान ने मनुष्य को अपना प्रति रूप बनाया। इससे स्वसिद्ध है कि भगवान (अल्लाह) आकार में है और वह मनुष्य जैसा है। वह पूर्ण परमात्मा तो यहाँ तक रचना छः दिन में करके सातवंे दिन अपने सत्यलोक में तख्त पर विराजमान हो गया। इसके बाद अव्यक्त प्रभु (काल/ज्योति निरंजन) की भूल-भुलईयाँ प्रारम्भ हो गई।

पवित्र बाईबल में अव्यक्त साकार प्रभु (काल) के विषय में वर्णन

पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टि रचना करके विश्राम किया। तत्पश्चात् अव्यक्त प्रभु (काल) ने बागडोर संभाल ली। हजरत आदम तथा हजरत हव्वा (जो श्री आदम जी की पत्नी थी) को कहा कि इस वाटिका में लगे हुए फलों को तुम खा सकते हो। लेकिन ये जो बीच वाले फल हैं इनको मत खाना, अगर खाओगे तो मर जाओगे। परमेश्वर ऐसा कह कर चला गया।

उसके बाद एक सर्प आया और कहा कि तुम ये बीच वाले फल क्यों नहीं खा रहे हो? हव्वा जी ने कहा कि भगवान (अल्लाह) ने हमें मना किया है कि अगर तुम इनको खाओगे तो मर जाओगे, इन्हें मत खाना। सर्प ने फिर कहा कि भगवान ने आपको बहकाया हुआ है। वह नहीं चाहता है कि तुम प्रभु के सदृश ज्ञानवान हो जाओ। यदि तुम इन फलों को खा लोगे तो तुम्हें अच्छे और बुरे का ज्ञान हो जाएगा। आपकी आँखों पर से वह पर्दा हट जाएगा जो अज्ञानता का प्रभु ने आपके ऊपर डाल रखा है। यह बात सर्प ने हव्वा को कही जो कि आदम की पत्नी थी। हव्वा ने अपने पति हजरत आदम से कहा कि हम ये फल खायेंगे और हमें भले-बुरे का ज्ञान हो जाएगा। ऐसा ही हुआ। उन्होंने वह फल खा लिया तो उनकी आँखें खुल गई तथा वह अंधेरा हट गया जो भगवान ने उनके ऊपर अज्ञानता का पर्दा डाल रखा था। जब उन्होंने देखा कि हम दोनों निवस्त्र हैं तो शर्म आई और अंजीर के पत्तों को तोड़ कर अपने पर्दो पर बांधा।

कुछ दिनों के बाद जब शाम के समय घूमने के लिए प्रभु आया तो पूछा कि तुम कहाँ हो? आदम जी तथा हव्वा जी ने कहा कि हम छुपे हुए है, क्योंकि हम निवस्त्र हैं। भगवान ने कहा कि क्या तुमने उस बीच वाले फल को खा लिया? आदम ने कहा कि हाँ जी और उसके खाने के बाद हमें महसूस हुआ कि हम निवस्त्र हैं। प्रभु ने पूछा कि तुम्हें किसने बताया कि ये फल खाओ। आदम ने कहा कि हमारे को सर्प ने बताया और हमने वह खा लिया। उसने मेरी पत्नी हव्वा को बहका दिया और हमने उसके बहकावे में आकर ये फल खा लिया।

21. फिर यहोवा प्रभु ने आदम तथा उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अंगरखे पहना दिए।

अनेक प्रभुओं का प्रमाण

3:22. फिर यहोवा प्रभु ने (उत्पत्ति अध्याय 3/22 तथा 17/1 तथा 18/1 से 5 तथा 16 से 23 तथा 26-29-32-33 में) कहा मनुष्य भले-बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। इसलिए ऐसा न हो कि यह जीवन के वृक्ष वाला फल भी तोड़कर खा ले और सदा जीवित रहे। उत्पत्ति ग्रन्थ के अध्याय 17 श्लोक 1 (17:1) में कहा है कि जब अब्राहिम निन्यानवे (99) वर्ष का हो गया तब यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा ‘‘मैं सर्वशक्तिमान हूँ। मेरी उपस्थिति में चल और सिद्ध होता जा’’ फिर उत्पत्ति ग्रन्थ के अध्याय 18 श्लोक 1 से 10 तथा अध्याय 19 श्लोक 1 से 25 में तीन प्रभुओं का प्रमाण है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि आदम जी का प्रभु कह रहा है कि आदम को भले बुरे का ज्ञान होने से हम में से एक के समान हो गया है। इससे सिद्ध हुआ कि ऐसे प्रभु और भी हैं जब कि इसाई धर्म के श्रद्धालु कहते है परमात्मा एक है तथा यह भी प्रमाणित हुआ कि परमात्मा साकार है मनुष्य जैसा है।

उत्पत्ति ग्रन्थ अध्याय 3 के श्लोक 23. व 24. इसलिए प्रभु ने आदम व उसकी पत्नी को अदन के उद्यान से निकाल दिया।
काल प्रभु ने उनको उस वाटिका से निकाल दिया और कहा कि अब तुम्हें यहाँ नहीं रहने दूँगा और तुझे अपना पेट भरने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा और औरत को श्राप दिया कि तू हमेशा आदमी के अधीन रहेगी।

{विशेष:- श्री मनु जी के पुत्र इक्ष्वाकु तथा इसी वंश में राजा नाभीराज हुए। राजा नाभीराज के पुत्र श्री ऋषभदेव जी हुए जो पवित्र जैन धर्म के प्रथम तीरथंकर माने जाते हैं। यही श्री ऋषभदेव जी की पवित्रात्मा बाबा आदम हुए। जैन धर्म के सद्ग्रन्थ ‘‘आओ जैन धर्म को जाने‘‘ पृष्ठ 154 में लिखा है।} आदम व हव्वा के संयोग से दो पुत्र उत्पन्न हुए। एक का नाम काईन तथा दूसरे का नाम हाबिल रखा। काईन खेती करता था। हाबिल भेड़-बकरियाँ चराया करता था। काईन कुछ धुर्त था परन्तु हाबिल ईश्वर पर विश्वास करने वाला था। काईन ने अपनी फसल का कुछ अंश प्रभु को भेंट किया। प्रभु ने अस्वीकार कर दिया। फिर हाबिल ने अपने भेड़ के पहले मेमने को प्रभु को भेंट किया, प्रभु ने स्वीकार किया। {यदि बाबा आदम में प्रभु बोल रहा होता तो कहता कि बेटा हाबिल मैं तेरे से प्रसन्न हूँ। आपने जो मैमना भेंट किया यह आपकी प्रभु के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यह आप ही ले जाईये और इसे बेच कर धर्म (भण्डारा) कीजिए और अपनी भेड़ों की ऊन उतार कर रोजी-रोटी चलाईये तथा प्रभु में विश्वास रखिये। यह बाबा आदम के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके कोई प्रेत व पितर बोल रहा था तथा इसी प्रकार पवित्र बाईबल में माँस खाने का प्रावधान पितरों ने किसी नबी में बोल कर करवाया है।} इससे काईन को द्वेष हुआ तथा अपने छोटे भाई को मार दिया। कुछ समय के बाद आदम व हव्वा से एक पुत्र हुआ उसका नाम सेत रखा। सेत को फिर पुत्र हुआ उसका नाम एनोस रखा। उस समय से लोग प्रभु का नाम लेने लगे।

विचार करें - जहाँ से पवित्र ईसाई व मुसलमान धर्म प्रथम पुरूष के वंश की शुरूआत हुई वहीं से मार-काट लोभ और लालच द्वेष परिपूर्ण है। आगे चलकर इसी परंपरा में ईसा मसीह जी का जन्म हुआ। इनकी पूज्य माता जी का नाम मरियम तथा पूज्य पिता जी का नाम यूसुफ था। परन्तु मरियम को गर्भ एक देवता से रहा था। इस पर यूसुफ ने आपत्ति की तथा मरियम को त्यागना चाहा तो स्वपन में (फरिश्ते) देवदूत ने ऐसा न करने को कहा तथा यूसुफ ने डर के मारे मरियम का त्याग न करके उसके साथ पति-पत्नी रूप में रहे। देवता से गर्भवती हुई मरियम ने ईसा को जन्म दिया। हजरत ईसा से पवित्र ईसाई धर्म की स्थापना हुई। ईसा मसीह के नियमों पर चलने वाले भक्त आत्मा ईसाई कहलाए तथा पवित्र ईसाई धर्म का उत्थान हुआ।

प्रमाण के लिए कुरान शरीफ में सूरः मर्यम-19 में तथा पवित्र बाईबल में मती रचित सुसमाचार मती=1:25 पृष्ठ नं. 1-2 पर।

हजरत ईसा जी को भी पूर्ण परमात्मा सत्यलोक से आकर मिले तथा एक परमेश्वर का मार्ग समझाया। इसके बाद ईसा जी एक ईश्वर की भक्ति समझाने लगे। लोगों ने बहुत विरोध किया। फिर भी वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। परन्तु बीच-बीच में ब्रह्म(काल/ज्योति निरंजन) के फरिश्ते हजरत ईसा जी को विचलित करते रहे तथा वास्तविक ज्ञान को दूर रखा। हजरत यीशु का जन्म तथा मृत्यु व जो जो भी चमत्कार किए वे पहले ब्रह्म(ज्योति निरंजन) के द्वारा निर्धारित थे। यह प्रमाण पवित्र बाईबल में है कि एक व्यक्ति जन्म से अंधा था। वह हजरत यीशु मसीह के पास आया। हजरत जी के आशीर्वाद से उस व्यक्ति की आँखें ठीक हो गई। शिष्यों ने पूछा हे मसीह जी इस व्यक्ति ने या इसके माता-पिता ने कौन-सा ऐसा पाप किया था जिस कारण से यह अंधा हुआ तथा माता-पिता को अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यीशु जी ने कहा कि इसका कोई पाप नहीं है जिसके कारण यह अंधा हुआ है तथा न ही इसके माता-पिता का कोई पाप है जिस कारण उन्हें अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यह तो इसलिए हुआ है कि प्रभु की महिमा प्रकट करनी है। भावार्थ यह है कि यदि पाप होता तो हजरत यीशु आँखे ठीक नहीं कर सकते थे। यह सब काल ज्योति निरंजन (ब्रह्म) का सुनियोजित जाल है। जिस कारण उसके द्वारा भेजे अवतारों की महिमा बन जाए तथा आस पास के सभी प्राणी उस पर आसक्त होकर उसके द्वारा बताई ब्रह्म साधना पर अटल हो जाऐं। जब परमेश्वर का संदेशवाहक आए तो कोई भी विश्वास न करे। जैसे हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पितर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। उसके अवतार की महिमा बन जाती है। या कोई साधक पहले का भक्ति युक्त होता है। उससे भी ऐसे चमत्कार उसी की कमाई से करवा देता है तथा उस साधक की महिमा करवा कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।

इसी तरह का उदाहरण पवित्र बाईबल ‘शमूएल‘ नामक अध्याय 16:14-23 में है कि शाऊल नामक व्यक्ति को एक प्रेत दुःखी करता था। उसके लिए बालक दाऊद को बुलाया जिससे उसको कुछ राहत मिलती थी। क्योंकि हजरत दाऊद भी ज्योति निरंजन का भेजा हुआ पूर्व शक्ति युक्त साधक पूर्व की भक्ति कमाई वाला था। जिसको ‘जबूर‘ नामक किताब ज्योति निरंजन/ब्रह्म ने बड़ा होने पर उतारी।

हजरत ईसा मसीह की मृत्यु 30 वर्ष की आयु में हुई जो पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है तथा तुम (मेरे बारह शिष्यों) में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़वाएगा। उसी रात्रि में सर्व शिष्यों सहित ईसा जी एक पर्वत पर चले गए। वहाँ उनका दिल घबराने लगा। अपने शिष्यों से कहा कि आप जागते रहना। मेरा दिल घबरा रहा है। मेरा जी निकला जा रहा है। मुझे सहयोग देना। ऐसा कह कर कुछ दूरी पर जाकर मुंह के बल पृथ्वी पर गिरकर प्रार्थना की (38,39), वापिस चेलों के पास लौटे तो वे सो रहे थे। यीशु ने कहा क्या तुम मेरे साथ एक पल भी नहीं जाग सकते। जागते रहो, प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में फेल न हो जाओ। मेरी आत्मा तो मरने को तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है। इसी प्रकार यीशु मसीह ने तीन बार कुछ दूर जाकर प्रार्थना की तथा फिर वापिस आए तो सभी शिष्यों को तीनों बार सोते पाया। ईसा मसीह के प्राण जाने को थे, परन्तु चेले राम मस्ती में सोए पड़े थे। गुरु जी की आपत्ति का कोई गम नहीं।

तीसरी बार भी सोए पाया तब कहा मेरा समय आ गया है, तुम अब भी सोए पड़े हो। इतने में तलवार तथा लाठी लेकर बहुत बड़ी भीड़ आई तथा उनके साथ एक ईसा मसीह का खास यहूंदा इकसरौती नामक शिष्य था, जिसने तीस रूपये के लालच में अपने गुरु जी को विरोधियों के हवाले कर दिया। (मत्ती 26:24-55 पृष्ठ 42-44)

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुण्यात्मा ईसा मसीह जी को केवल अपना पूर्व का निर्धारित जीवन काल प्राप्त हुआ जो उनके विषय में पहले ही पूर्व धर्म शास्त्रों में लिखा था। ‘‘मत्ती रचित समाचार‘‘ पृष्ठ 1 पर लिखा है कि याकुब का पुत्र युसूफ था। युसूफ ही मरियम का पति था। मरियम को एक फरिश्ते से गर्भ रहा था। तब हजरत ईसा जी का जन्म हुआ समाज की दृष्टि में ईसा जी के पिता युसूफ थे। (मत्ती 1:1-18)

तीस (30) वर्ष की आयु में ईसा मसीह जी को शुक्रवार के दिन सलीब मौत (दीवार) के साथ एक cross आकार के लकड़ के ऊपर ईसा को खड़ा करके हाथों व पैरों में मेख (मोटी कील) गाड़ दी। जिस कारण अति पीड़ा से ईसा जी की मृत्यु हुई। तीसरे दिन रविवार को ईसा जी फिर से दिखाई देने लगे। 40 दिन (चालीस) कई जगह अपने शिष्यों को दिखाई दिए। जिस कारण भक्तों में परमात्मा के प्रति आस्था दृढ़ हुई। वास्तव में पूर्ण परमात्मा ने ही ईसा जी के रूप में प्रकट होकर प्रभु भक्ति को जीवित रखा था। काल तो चाहता है यह संसार नास्तिक हो जाए। परन्तु पूर्ण परमात्मा ने यह भक्ति वर्तमान समय तक जीवित रखनी थी। अब यह पूर्ण रूप से फैलेगी। उस समय के शासक(गवर्नर) पिलातुस को पता था कि ईसा जी निर्दोष हैं परन्तु फरीसियों अर्थात् मूसा के अनुयाईयों के दबाव में आकर सजा सुना दी थी।

“हजरत ईसा मसीह में देव तथा पितर प्रवेश करके चमत्कार दिखाने का प्रमाण”

एक स्थान पर हजरत ईसा जी ने कहा है कि मैं याकुब (जो मरियम के पति का भी पिता था) से भी पहले था। संसार की दृष्टि में ईसा मसीह का दादा जी याकुब था। ईसा जी नहीं कहते कि मैं याकुब से भी पहले था। इससे सिद्ध है कि ईसा जी में कोई अन्य फरिश्ता बोल रहा था जो प्रेतवत प्रवेश कर जाता था, भविष्यवाणी कर जाता था।

एक और उदाहरण ग्रन्थ बाईबल अध्याय 2 कुरिन्थियों 2:12-17 पृष्ठ 259-260 में स्पष्ट लिखा है कि एक आत्मा किसी में प्रवेश करके बोल रही है। कहा है कि (14) परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय उत्सव में लिए फिरता है और अपने ज्ञान की सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है। 17. हम उन लोगों में से नहीं हैं जो परमेश्वर के वचनों में मिलावट करते हैं। हम तो मन की सच्चाई और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर की उपस्थिति जान कर मसीह में बोलते हैं। 
उपरोक्त विवरण पवित्र बाईबल के अध्याय कुरिन्थियों 2:12 से 18 पृष्ठ 259-260 से ज्यों का त्यों लिखा है। इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं 1. मसीहा (नबी अर्थात् अवतार) में कोई अन्य फरिश्ता बोलकर किताबें लिखाता है। जो प्रभु का भेजा हुआ होता है वह तो प्रभु का संदेश ज्यों का त्यों बिना परिवर्तन किए सुनाता है। 2. दूसरी बात यह भी सिद्ध हुई कि मसीह (नबी) में अन्य आत्मा भी बोलते हैं जो अपनी तरफ से मिलावट करके भी बोलते हैं। यही कारण है कि र्कुआन शरीफ (मजीद) तथा बाईबल आदि में माँस खाने का आदेश अन्य आत्माओं का है, प्रभु का नहीं है।

इन्हीं प्रेतों तथा पित्तरों व फरिश्तों तथा ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने हजरत मुहम्मद जी में प्रवेश करके काल (ब्रह्म/ज्योति निरंजन) तक का अटकल युक्त ज्ञान प्रवेश करके भ्रमित किया हुआ है। न तो र्कुआन शरीफ (मजीद) तथा तौरत, इंजिल आदि का ज्ञान पूर्ण है, न भक्ति विधि पूर्ण है, क्योंकि उपरोक्त सर्व पवित्र पुस्तकों का ज्ञान दाता वही है जो र्कुआन शरीफ (मजीद) का है। जो सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 58 व 59 में कह रहा है कि सर्व सृष्टि रचनहार, सर्व पापों का नाश करने वाला, सर्व का पालन कर्ता कबीर दयालु प्रभु है। उपरोक्त सर्व पुस्तकों तथा र्कुआन शरीफ व मजीद सहित का ज्ञान दाता प्रभु अपनी अल्पज्ञता जता रहा है कि उस कबीर प्रभु के वास्तविक ज्ञान तथा भक्ति मार्ग को किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी संत) से पूछो। इससे सिद्ध है कि र्कुआन शरीफ व अन्य उपरोक्त पुस्तकों में ज्ञान पूर्ण नहीं है।

इसी प्रकार पवित्र हिन्दू धर्म के माने जाने वाले चारों पवित्र वेद तथा पवित्र गीता का ज्ञान दाता ब्रह्म(काल / ज्योति निरंजन) भी कह रहा है कि मेरी भक्ति तथा ब्रह्मा, विष्णु व शिव की साधना व्यर्थ है। इसलिए उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शांति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा। उस परमात्मा की भक्ति विधि तथा पूर्ण ज्ञान के विषय में किसी तत्त्वदर्शी संत की खोज कर, फिर जैसे वह तत्त्वदृष्टा संत साधना बताऐ उसी प्रकार अनन्य मन से कर। फिर गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा कि मैं भी उसी की शरण में हूँ। (प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10, 13 तथा 17 तथा अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मंत्र 1 से 7 तथा गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 18, 20 से 23 में, गीता अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4-17 में)।

Sat Sahib