“हजरत मुहम्मद जी में काल (ब्रह्म) तथा अन्य देव व पितर प्रवेश करके बोलते थे’’ का प्रमाण
सर्व पवित्र धर्मों के श्रद्धालु वास्तविक ज्ञान तथा भक्ति विधि से वंचित हैं। वह वास्तविक तत्त्वज्ञान तथा भक्ति विधि मैं (कबीर परमेश्वर काशी वाला जुलाहा/धाणक) स्वयं ही बताने आया हूँ। मुझ पर विश्वास करो। और बताता हूँ (परमेश्वर कबीर साहेब जी ने अपने अमृत वचनों को जारी रखते हुए कहा) -
मैंने एक मुल्ला द्वारा र्कुआन शरीफ की कुछ सूरतों का विवरण सुना था, उनमें निम्न विवरण लिखा है - र्कुआन शरीफ अर्थात् र्कुआन मजीद की प्राप्ति कैसे हुई? (र्कुआन शरीफ वाला ज्यों का त्यों विवरण र्कुआन मजीद में है)।
र्कुआन मजीद - तर्जुमा, फतेह मुहम्मद खां साहब जालंधरी, प्रकाशक: महमूद एण्ड कम्पनी, मरोल पाईप लाईन, बम्बई-59, सोल एजेंट, फरीद बुक डिपो, देहली-6
उपरोक्त पुस्तक के: मुकदमा के पृष्ठ 6-7 पर लिखे है -
र्कुआन मजीद के उतरने और संग्रह व संकलन करने के हालात
उपरोक्त पुस्तक र्कुआन मजीद के मुकदमा पृष्ठ 6-7 पर लिखें लेखक के लेख का निष्कर्ष -
र्कुआन मजीद (शरीफ) 23 वर्षों में पूरी लिखी गई। जब हजरत मुहम्मद जी की आयु 40 वर्ष थी उस समय से प्रारम्भ हुई तथा अन्तिम समय 63 वर्ष की आयु तक 23 वर्ष लगातार कभी एक आयत, कभी आधी, कभी दो आयत, कभी 10 आयत, कभी पूरी सूरतें उतरी हैं। इसी को शरीअत में ‘‘बह्य‘‘ कहते हैं।
विद्वानों ने लिखा है ‘‘वह्य (वह्य)‘‘ उतरने के भिन्न-भिन्न तरीके हदीसों में पेश किए हैं।
1. फरिश्ता ‘‘वह्य(वह्य)‘‘ ले कर आता था तो घंटियाँ सी बजती थी। नबी मुहम्मद जी की जान निकलने को हो जाती थी। यह तरीका ज्यादा कष्ट दायक नबी मुहम्मद जी के लिए होता था। यह भी लिखा है कि हजरत मुहम्मद जी नुबूबत के बाद (चालीस वर्ष की आयु से नबी बनने के बाद) रमजान के दिनों में पूरा र्कुआन मजीद (शरीफ) अल्लाह के पास से उस आसमान से जिसे हम देख नहीं सकते हैं अल्लाह (प्रभु) के हुकम (आज्ञा) से उतारा गया अर्थात् उसी अल्लाह के द्वारा बोला गया। इसके बाद हजरत जिबराईल को जिस समय, जिस कदर हुकम (आज्ञा) हुआ, उन्होंने पवित्र कलाम को बिल्कुल वैसा ही बिना किसी परिवर्तन के नबी मुहम्मद जी तक पहुँचाया।
2. कभी फरिश्ता दिल में कोई बात डाल दे।
3. फरिश्ता आदमी के रूप में आकर बात करे।
{नोट - हजरत मुहम्म्द जी की जीवनी में लिखा है कि जिस समय जिब्राईल फरिश्ता प्रथम बार वह्य (वह्य) लेकर आया मनुष्य रूप में दिखाई दिया, तो उसने मुहम्मद जी का गला घोंट कर कहा इसे पढ़ो। हजरत मुहम्मद जी ने बताया कि मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे, वह मेरा गला घोंट रहा हो। मेरे शरीर को दबा रहा हो। ऐसा दो बार किया फिर तीसरी बार फिर कहा पढ़ो। मुझे ऐसा लगा कि वह फिर गला घोटेंगा, इस बार और जोर से भींचेगा, मैं बोला क्या पढ़ूं ? र्कुआन की प्रथम आयत पढ़ाई, वह मुझे याद हो गई। फिर फरिश्ता चला गया, मैं घबरा गया। दिल बैठता जा रहा था। पूरा शरीर थर-थर कांपने लगा। गुफा के बाहर आकर सोचा यह कौन था। फिर वही फरिश्ता आदमी की सूरत में दिखाई दिया, जहाँ देखूं वही दिखाई देने लगा। ऊपर, नीचे, दांए, बांए सब ओर। घर आकर चादर ओढ़कर लेट गया। सारा शरीर पसीने से भीगा हुआ था। मुझे डर है कि खदीजा कहीं मर न जाऊँ। फिर हजरत मुहम्मद जी ने अपनी पत्नी खदीजा को सारी बात बताई, फिर एक ‘बरका‘ नामक व्यक्ति ने हजरत मुहम्मद जी से सारी बातें सुन कर कहा आप ‘नबी‘ बनोगे। यही फरिश्ता मूसा जी के पास भी आता था। उपरोक्त विवरण से तो सिद्ध होता है कि फरिश्ता आदमी रूप में वह्य लाता था तो भी हजरत मुहम्मद जी को बहुत कष्ट हुआ करता।}
4. अल्लाह तआला जागते में नबी मुहम्मद (सल्ल) से कलाम फरमाए। भावार्थ है कि आकाशवाणी करके ब्रह्म स्वयं बोलता था।
5. अल्लाह तआला सपने की हालत में कलाम फरमाए।
6. फरिश्ता सपने की हालत में आकर कलाम करे(इस छठी व पाँचवी प्रकार पर विवाद है, शेष उपरोक्त र्कुआन मजीद(शरीफ) के उतरने की 4 सही हैं।) पृष्ठ 29 पर लिखा है कि कभी स्वयं ‘‘वह्य(वह्य)‘‘ आती थी। भावार्थ है कि जैसे कोई प्रेत प्रवेश करके बोलता है। कभी नबी मुहम्मद चादर लपेट कर लेट जाते थे, फिर चादर के अन्दर से बोलते थे।
पवित्र र्कुआन मजीद (शरीफ) के मुकदमा के पृष्ठ 6-7 के लिखे लेख से स्पष्ट है कि जिबराईल नामक फरिश्ते ने तो केवल संदेश वाहक का कार्य किया है। ज्ञान व आदेश देने वाला प्रभु अर्थात् काल भगवान एक देशीय साकार सिद्ध हुआ जो सातवें आसमान पर अव्यक्त रूप में है, जिसे देखा नहीं जा सकता। अव्यक्त का उदाहरण है जैसे सूर्य बादलों के पार होने के कारण अदृश्य (अव्यक्त) होता है। दिन होते हुए भी दिखाई नहीं देता। इसी प्रकार परमात्मा एक देशीय जाने तथा अपनी
शक्ति से छुपा है। जिस कारण से उसे निराकार माना है। परन्तु भक्ति की सत्य साधना द्वारा उसे देखा जा सकता है। वह सत्य भक्ति विधि कुरान शरीफ में नहीं है क्योंकि उसके लिए किसी बाखबर (तत्त्वदर्शी) से जानने को कहा है। र्कुआन शरीफ (मजीद) के ज्ञान दाता ने किसी अन्य कबीर नामक अल्लाह (प्रभु) को सर्व का पालन कर्ता, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, सर्व के पूजा के योग्य कहा है। र्कुआन शरीफ (मजीद) सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 58 तथा 59 में वर्णन है। जिसमें र्कुआन ज्ञान दाता अल्लाह ने कहा है कि उस उपरोक्त अल्लाह कबीर या खबीर जिसे अल्लाहु अकबर भी कहा जाता है। उसके विषय में मैं(र्कुआन का ज्ञान दाता) नहीं जानता। उसके विषय में किसी बाखबर(तत्त्वदर्शी संत) से पूछो। वह कबीर अल्लाह छः दिन में सृष्टि की उत्पत्ति करके सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। इससे यह भी सिद्ध होता है कि पूर्ण परमात्मा कबीर साकार है। यही प्रमाण पवित्र बाईबल ‘‘उत्पत्ति ग्रंथ‘‘ में भी है। हजरत आदम के अल्लाह(प्रभु) ने पूर्ण परमात्मा के द्वारा रची सृष्टि का वर्णन किया है। छठे दिन परमेश्वर ने कहा कि हम मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाएं। प्रभु ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार बनाया। फिर उनके खाने के लिए केवल फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिये। माँस खाने की आज्ञा नहीं दी तथा सातवें दिन विश्राम किया।
“पवित्र ईसाई तथा मुसलमान धर्मों के अनुयाईयों को कर्माधार से लाभ-हानि करने वाले भी (श्री ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव) तीन ही देवता”
हजरत आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा तथा अन्य प्राणियों व सर्व ब्रह्मण्डों की उत्पत्ति करके र्कुआन व बाईबल बोलने वाले प्रभु को सौंप गया। बाईबल के उत्पत्ति ग्रंथ से भी सिद्ध होता है कि परमात्मा मनुष्य जैसा है। क्योंकि प्रभु ने मनुष्य को अपने जैसा बनाया तथा सात दिन के बाद का वर्णन र्कुआन शरीफ व बाईबल ज्ञान दाता(काल/ज्योति निरंजन) की लीला का है। पवित्र बाईबल में लिखा है कि ‘फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, मनुष्य भले-बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। इसलिए अब ऐसा न हो कि वह हाथ बढ़ा कर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे। परमेश्वर ने उसे अदन के उ़द्यान से निकाल दिया।
उपरोक्त विवरण से यह भी सिद्ध होता है कि जो आदम का प्रभु है ऐसा कोई और भी है तथा साकार है। इसीलिए तो कहा है कि मनुष्य जीवन फल को खाकर हम में से एक के समान हो गया है। क्योंकि बाईबल के उत्पत्ति ग्रन्थ में ही लिखा है कि आदम ने भले-बुरे के ज्ञान वाला फल तोड़ कर खा लिया तो उसे पता चला वह नंगा है। यहोवा परमेश्वर टहलते हुए आ गया। उसने आदम को पुकारा तू कहाँ है? तब आदम ने कहा मैं तेरी आवाज सुनकर छुप गया हूँ, क्योंकि मैं नंगा हूँ। फिर परमेश्वर ने आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा के वस्त्र बनवाए।
विचार करें उपरोक्त विवरण स्वयं सिद्ध कर रहा है कि पूर्ण परमात्मा भी सशरीर मनुष्य जैसे आकार का है तथा अन्य प्रभु भी मनुष्य जैसे आकार के हैं, जिसे पवित्र ईसाई तथा मुसलमान धर्म निराकार मानता है तथा प्रभु एक से अधिक भी हैं।
क्योंकि काल ब्रह्म स्वयं सामने नहीं आता, उसने अपने तीनों पुत्रों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) के द्वारा एक ब्रह्मण्ड का कार्य चला रखा है। हजरत आदम जी भगवान ब्रह्मा के अवतार हैं। हजरत आदम को श्री ब्रह्मा जी ने बहका कर रखा था, उसी ने उसको वहाँ से निकाला था। इसीलिए कहा है कि भले बुरे के ज्ञान वाला फल खाकर आदम हम में से एक के समान हो गया है। क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देव हैं, हजरत ईसा के अवतार धारण करने के विषय में पवित्र बाईबल में लिखा है कि प्रभु ईश्वर ने पृथ्वी पर बढ़ रहे दुराचार के अन्त के लिए अपने पुत्र को भेजा था, क्योंकि हजरत ईसा जी भगवान विष्णु के अवतार हैं। विष्णु लोक से कोई देव आत्मा का जन्म मरयम के गर्भ से फरिस्ते (देव) द्वारा हुआ था।
“मामरे पर तीनों देवताओं के देखने का प्रमाण”
(इसहाक के जन्म की प्रतिज्ञा)
इसमें लिखा है कि अब्राहम मम्रे (मामरे) के बांजों के बीच कड़ी धूप के समय तम्बू के द्वार पर बैठा था , तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया। और उसने आँख उठा कर देखा तो तीन पुरुष उसके सामने खड़े हैं। उन्होंने अब्राहम की प्रार्थना पर खाना खाया तथा वृद्ध अवस्था में पुत्र होने का आशीर्वाद देकर चले गए तथा जाते समय कहा कि हम सदोम आदि नगरों का नाश करने जा रहे हैं। वहाँ के लोग अधर्मी हो गए हैं। अब्राहम ने पूछा क्या आप अधर्मियों के साथ धर्मियों को भी मार डालोगे। प्रभु ने कहा यदि 100 व्यक्ति भी धर्मी होंगे तो भी हम उस नगरी का नाश नहीं करेंगे। ‘‘सदोम आदि नगरों का विनाश‘‘ नामक विषय में लिखा है कि उनमें से दो दूत ‘‘सदोम‘‘ में पहुँचे।सदोम में लूत (लोट) नामक व्यक्ति रहता था। उस गाँव के व्यक्ति बहुत निकम्मे थे। लूत (लोट) ने उन्हें आदर पूर्वक रोका। गाँव वालों ने उन फरिश्तों को आम व्यक्ति जान कर उनके साथ कुकर्म (नर से नर बलात्कार करना) करने के लिए बाहर निकलने को कहा। परन्तु लूत (लोट) ने कहा यह मेरे अतिथि हैं, मैं इन्हें आपको नहीं दे सकता। आप मेरी लड़की को ले लो। इस बात से प्रसन्न फरिश्तों ने सभी निकम्मे व्यक्तियों को अंधा कर दिया तथा लूत(लोट) को उसके परिवार सहित उस गाँव से निकाल कर पूरे गाँव को नष्ट कर दिया। इससे सिद्ध हुआ कि तीनों देवता हैं, जो ब्रह्म के आदेश से सर्व को किए कर्म का फल देते हैं।
उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि तीन देवता हैं। उनमें से कभी दो कभी एक अपने-अपने साधक के पास जाते हैं। यदि कोई तीनों का साधक है तो तीनों भी एक साथ जाते हैं, यदि कोई दो का साधक है तो दो भी दर्शन देते हैं। उपरोक्त प्रमाण से भी सिद्ध होता है कि तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ही अपने पिता ब्रह्म के आदेशानुसार एक ब्रह्मण्ड में सर्व कार्य करते हैं। भक्ति भाव के व्यक्तियों की कर्म अनुसार रक्षा तथा दुष्कर्म करने वालों का कर्म अनुसार नाश करते हैं। ब्रह्म(अव्यक्त कभी सामने दर्शन न देने वाला) प्रभु उपरोक्त तीनों फरिश्तों (देवताओं) द्वारा अपना आदेश नबियों के पास भिजवाता है तथा आकाशवाणी द्वारा या प्रेतवत प्रवेश करके स्वयं भी आदेश देता है। फरिश्ते तो उसका ज्यों का त्यों आदेश सुनाते हैं। आदेश में कोई परिवर्तन नहीं करते। इससे स्पष्ट हुआ कि पवित्र बाईबल तथा पवित्र र्कुआन सहित चारों कतेबों का ज्ञान दाता प्रभु किसी अन्य कबीर नामक प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है।
विशेष:- र्कुआन शरीफ(मजीद) शूरः बकरः 2(87) आयत 21 से 33 तक उस पूर्ण परमात्मा की महिमा के विषय में वर्णन है तथा आयत 34 से अंत तक अपनी महिमा बताई है तथा अपने ज्ञान अनुसार पूजा विधि बताई है। यह भी स्पष्ट किया है कि मैंने (र्कुआन ज्ञान दाता ने) आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा को स्वर्ग की वाटिका में ठहराया तथा उनको बीच वाले वृक्षों के फल छोड़ कर शेष वृक्षों के फल खाने को कहा। परन्तु उन्होंने सर्प के बहकाने से बीच वाले वृक्षों के फल खा लिये। मैंने उनको जमीन पर दुःखी होने के लिये भेज दिया। (शूरः बकरः 2(87) आयत 35 से 39 तक।)
र्कुआन ज्ञान दाता अल्लाह ने स्पष्ट किया है कि मैंने ही हजरत मुसा को ‘‘तौरत‘‘ किताब उतारी थी तथा मूसा के लिए पत्थर से पानी के झरने निकाले थे(आयत 41, 53, 60)। हम ही मुसा के बाद एक के बाद दूसरा पैगम्बर भेजते रहे तथा ईसा बिन मरियम को खुली निशानियाँ बख्शी तथा रूहुल कुदस(यानि जिब्रील) से उनको मदद दी। (आयत 87)
सार विचार:- उपरोक्त पवित्र र्कुआन शरीफ के विवरण से स्पष्ट हुआ कि बाबा आदम से लेकर हजरत ईसा, हजरत अब्राहम, हजरत दाऊद, हजरत मुसा, हजरत मुहम्मद साहेब तक को पैगम्बर बना कर भेजने वाला खुदा(अल्लाह/प्रभु) एक ही है। उसी ने र्कुआन शरीफ अर्थात् मजीद का ज्ञान बह्य के द्वारा स्वयं प्रेतवत प्रवेश करके या आकाशवाणी करके कहा है या फरिश्तों के माध्यम से हजरत मुहम्मद तक ज्यांे का त्यों पहुँचाया है। वही खुदा सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 58 तथा 59 में कह रहा है कि हे पैगम्बर (हजरत मुहम्मद) पूर्ण परमात्मा कबीर है, परन्तु काफिर लोग मेरी इस बात पर विश्वास नहीं करते। आप उनकी कही बातों को मत मानना मेरे द्वारा दिया यह कुरान शरीफ वाले ज्ञान की दलीलों पर विश्वास करना की कबीर अल्लाह उसी को अल्लाह अक्बरू कहते हैं। इस ज्ञान के समर्थन में काफिरों के साथ संघर्ष करना भावार्थ है कि काफिर लोग कहते हैं कि कबीर अल्लाह नहीं है। आप (हजरत मुहम्मद) कहना कि कबीर अल्लाह है। लड़ना नहीं है। उनकी बातों में नहीं आना हैं (आयत 52) वह (कबीर अल्लाह) वही है जिसने जमीन व आसमान के बीच सर्व रचा, दिन-रात बनाए, परिवार, रिश्तेदार, आदि इन्सान के लिए बनाए तथा जमीन में मीठा पानी आदि पदार्थ प्रदान किए।(आयत 53 से 55) हे पैगम्बर(हजरत मुहम्मद)! मैंने जो कुरान की आयतों द्वारा ज्ञान दिया है उसमें जो कबीर है वह पूर्ण परमात्मा है उस पर विश्वास रखना। काफिर लोग उस कबीर को परमात्मा अल्लाह नहीं मानते। उनकी बातें मत मानना, उनके साथ ज्ञान का संघर्ष करना लड़ना नहीं परन्तु उनकी बातों को स्वीकार नहीं करना। (आयत 52) वह कबीर परमात्मा वही है जिसने सर्व सृष्टि की रचना की है। जिसने परिवार के जन उत्पन्न किए नाते-रिश्ते बनाए। सर्व का पालन करता है। (आयत 53 से 55) हमने तुम्हें खुशखबरी सुनाने (सिर्फ अजाब से) डराने के लिये भेजा है। (आयत 56) और (ऐ पैगम्बर) उस जिंदा पर भरोसा रखो जो कभी मरने वाला नहीं है। {क्योंकि पूर्ण परमात्मा (अल्लाह कबीर) एक जिन्दा महात्मा की वेशभूषा में हजरत मुहम्मद जी को मिला था तथा सतलोक आदि को दिखाया था, परन्तु हजरत मुहम्मद जी ने पूर्ण परमात्मा की बात पर विश्वास नहीं किया था। उसी का वर्णन है।} तारीफ के साथ उसकी पाकी ब्यान करते रहो और वह कबीर अल्लाह अपने बंदो के गुनाहों से खबरदार है तथा वही (ईवादही खबीरा/कबीरा) कबीर परमात्मा अर्थात् अल्लाहू अकबर पूजा के योग्य है। (58) वह कबीर अल्लाह वही है जिसने छः दिन में सर्व ब्रह्मण्डों को रचा तथा सातवें दिन तख्त पर विराजा। वास्तव में वह अल्लाह कबीर रहमान(क्षमा शील) है। उसके विषय में मैं (र्कुआन शरीफ/मजीद का ज्ञान दाता) नहीं जानता। उसकी खबर अर्थात् पूर्ण ज्ञान व भक्ति की विधि किसी बाखबर(तत्त्वदर्शी संत) से पूछो। (आयत 59)
उपरोक्त विवरण से यह भी सिद्ध हुआ कि प्रभु एक नहीं अनेक हैं तथा तीनों देवता (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी) ही तीनों लोकों के प्राणियों को संस्कारवश लाभ व हानि तथा उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार के कारण हैं तथा ब्रह्म(काल) सर्व को धोखा देकर रखता है। पूर्ण परमात्मा कबीर ही सर्व सुखदायक, सर्व के पूजा के योग्य तथा पूर्ण मोक्ष दायक है।
पूज्य कबीर परमेश्वर बता रहे हैं कि मैंने उस मुल्ला जी से कहा कि जिस बाखबर(तत्त्वदृष्टा) संत के लिये आपका अल्लाह संकेत कर रहा है। उस तत्त्वदृष्टा संत द्वारा दिया ज्ञान ही पूर्ण मोक्ष दायक है। वह वास्तविक भक्ति मार्ग न तो हजरत मुहम्मद जी को प्राप्त हुआ, न आप मुल्ला, काजियों व पीरों को। इसलिए आज तक जो भी साधना आप कर रहे हो वह अधूरी है। केवल ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का फैलाया भ्रम जाल है। यह नहीं चाहता कि साधक मेरे जाल से निकल जाए। पूज्य कबीर परमेश्वर ने बताया वह बाखबर (अर्थात् तत्त्वदर्शी संत) मैं हूँ। आप मेरे से उपदेश लो तथा यह तत्त्वज्ञान जो मैं आपको बताऊंगा अन्य भक्ति चाहने वालों को भी समझाओ। यह तो काल है जिसे वेदों में ब्रह्म(क्षर पुरुष/ज्योति निरंजन) कहा जाता है। पूर्ण परमात्मा कोई और है जिसे वेदों में कविर्देव कहा है तथा र्कुआन शरीफ(मजीद) में कबीरन्, कबीरा, खबीरन्, खबीरा आदि कहा है तथा जिसे हजरत मुहम्मद जी ने अल्लाहु अकबर कहा है। वह कबीर अल्लाह मैं हूँ। आप सर्व मेरी आत्मा हो। आपको काल(ब्रह्म) ने भ्रमित किया है।
बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर ने आगे बताया - यह वार्ता सुनकर वह मुल्ला मुझसे अति नाराज हो गया तथा आगे से उसकी कथा में न आने को कहा। पूज्य कबीर परमेश्वर से उपरोक्त विवरण जानकर बादशाह सिंकदर लौधी ने अपने धार्मिक गुरू शेखतकी से कहा ‘‘पीर जी, क्या र्कुआन शरीफ में महाराज कबीर साहेब जी द्वारा बताया विवरण है?’’ शेखतकी ने र्कुआन शरीफ में सूरत फुरकानी 25 आयत 52 से 59 को ध्यान से पढ़ा तथा सत्य को जाना परन्तु मान वश कह दिया कि कबीर जी तो झूठा है। यह क्या जाने पवित्र र्कुआन शरीफ के गूढ रहस्य को। यह कहकर अति नाराजगी व्यक्त करता हुआ उठ कर अपने कमरे में चला गया। बादशाह सिकंदर लौधी भी र्कुआन शरीफ को सुना करता था तो उसे याद आया कि ऐसा वर्णन अवश्य आता है। फिर भी भक्ति मार्ग तथा अरबी भाषा का ज्ञान न होने के कारण पूर्ण विश्वास नहीं हुआ। परन्तु हजरत मुहम्मद जी के जीवन चरित्र से पूर्ण परिचित था। उससे बहुत प्रभावित हुआ तथा कहा कि सच-मुच हजरत मुहम्मद जी के जीवन में कष्ट ही कष्ट रहे हैं।