अध्याय ‘‘सुल्तान बोध‘‘ का सारांश
कबीर सागर में 16वां अध्याय ‘‘सुल्तान बोध‘‘ पृष्ठ 37 (757) पर है।
‘‘सुल्तान‘‘ फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘‘राजा‘‘। एक अब्राहिम अधम नाम का राजा था। उसको ‘‘इब्राहिम अधम सुल्तान‘‘ कहा जाता था। उसके राज्य के व्यक्ति उसको ‘‘सुल्तान‘‘ कहा करते थे। उनका पूरा नाम नहीं लेते थे। जैसे उपायुक्त यानि डिप्टी कमीश्नर कार्यालय के अधिकारी व कर्मचारी आपस में एक-दूसरे को कोई कार्य करने को कहते हैं तो कहते हैं कि साहब ने कहा है। वे बार-बार उपायुक्त साहब या डी.सी. साहब नहीं कहते। उनके लिए साहब शब्द से स्पष्ट हो जाता है, किसका आदेश है? इसी प्रकार अब्राहिम अधम सुल्तान को सुल्तान शब्द से जाना जाने लगा था। पूर्व जन्म के भक्त ही राजपद, अधिकारी पद तथा धनपति बनते हैं। यह जीव जबसे सत्यपुरूष से बिछुड़कर काल ब्रह्म के जाल में फँसा है। उसके कुछ समय उपरांत इसको उस सुख की खोज है जो यह सत्यलोक में छोड़कर आया है। जैसे गाय या भैंस के बच्चे को उसकी माता के स्तनों का दूध पी रहे को हटाकर व्यक्ति अपने हाथ की ऊँगलियों को उसके मुख में डाल देता है। वह बच्चा माता का थन समझकर थनों को छोड़कर कुछ देर ऊँगलियों को चूसता है। दूध वाला स्वाद न आने के कारण कुछ देर में छोड़ देता है। फिर कभी रस्से के सिरे को, कभी माता के कान को मुख में देकर चूसता है, परंतु दूध वाला स्वाद तो दूध से ही मिलता है। यही दशा उन सब प्राणियों की है जो काल जाल में इक्कीस ब्रह्माडों में रह रहे हैं। उस सत्यलोक को प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे हैं, परंतु सत्य साधना न मिलने के कारण जन्म-मरण के चक्र में रह जाते हैं। परमेश्वर कबीर जी स्वयं सत्यपुरूष हैं। सत्यज्ञान सत्यभक्ति परमेश्वर स्वयं ही प्रकट होकर बताते हैं। सत्यपुरूष कबीर जी प्रत्येक युग में भिन्न नामों से प्रकट होते हैं। सत्ययुग में ‘‘सत्य सुकृत‘‘ नाम से, त्रोतायुग में ‘‘मुनीन्द्र‘‘ नाम से, द्वापर युग में ‘‘करूणामय नाम से‘‘, कलयुग में ‘‘कबीर नाम से‘‘ संसार में प्रकट होकर यथार्थ अध्यात्मिक ज्ञान तथा सत्य साधना मंत्रों का ज्ञान कराते हैं। कुछ भक्त परमेश्वर के ज्ञान को सुन-समझकर सत्य साधना करने लगते हैं, परंतु अज्ञानी संत तथा गुरू उनको भ्रमित कर सत्य साधना छुड़ाकर काल साधना पर पुनः दृढ़ कर देते हैं।
संत गरीबदास जी ने बताया कि मुझे परमेश्वर कबीर जी ने बताया कि:-
अनन्त कोटि बाजी तहाँ, रचे सकल ब्रह्मण्ड। गरीबदास मैं क्या करूँ, काल करै जीव खण्ड।।
भावार्थ:- परमात्मा कबीर जी ने बताया कि हे गरीबदास! मैं इतना समर्थ हूँ कि अनन्त जीवों की रचना तथा सब ब्रह्मण्डों की रचना मैंने की है। भोले जीव मुझे ठीक से न पहचानकर मुझे छोड़कर मेरे नाम को खण्ड करके काल के जाल में फँस जाते हैं। अब तुम ही बताओ, मैं क्या करूँ?
फिर कहा है:-
जो जन मेरी शरण है, ताका हूँ मैं दास। गेल-गेल लाग्या फिरूँ, जब तक धरती आकाश।।
गोता मारूँ स्वर्ग में, जा पैठूँ पाताल। गरीबदास खोजत फिरूँ, अपने हीरे मोती लाल।।
भावार्थ:- परमात्मा कबीर जी ने बताया है कि यदि कोई जीव किसी युग में मेरी दीक्षा ले लेता है। यदि वह पार नहीं हो पाता है तो उसको किसी मानुष जन्म में ज्ञान सुनाकर शरण में लूँगा। उसके साथ-साथ रहूँगा। मेरी कोशिश रहती है कि किसी प्रकार यह काल जाल से छूटकर सुखसागर सत्यलोक में जाकर सुखी हो जाए। मेरा प्रयत्न तब तक रहता है जब तक धरती और आकाश नष्ट नहीं होते यानि प्रलय नहीं होती। इसी प्रक्रिया के चलते अब्राहिम अधम सुल्तान की आत्मा पूर्व के कई जन्मों से परमेश्वर कबीर जी की शरण में रही थी। फिर काल ने खण्ड कर दिया। इसके पूर्व के कुछ जन्मों का विवरण इस प्रकार है जो पुराने कबीर सागर में है, वर्तमान वाले कबीर सागर से वह विवरण अज्ञानवश निकाल दिया गया है। कारण यह रहा है कि काल प्रेरणा से 12 पंथों के कबीर पंथी समझ नहीं सके। इसलिए उसको व्यर्थ जानकर ग्रन्थ से निकाल दिया।