सम्मन वाली आत्मा ही सुल्तान इब्राहिम था - सुल्तान बोध

सम्मन वाली आत्मा ही सुल्तान इब्राहिम था

जिस समय परमेश्वर कबीर जी काशी में प्रकट थे। उस समय दिल्ली के निवासी सम्मन मनियार, उसकी पत्नी नेकी तथा पुत्र शिव (सेऊ) ने परमेश्वर से दीक्षा ली थी। आर्थिक स्थिति कमजोर थी। परमात्मा के उपदेश का दृढ़ता से पालन करते थे। परमेश्वर पर पूर्ण विश्वास था। दोनों पति-पत्नी स्त्रिायों को चूड़ियाँ पहनाने का कार्य घर-घर जाकर करते थे। साथ में अपने गुरूदेव कबीर जी की महिमा भी किया करते थे। बताया करते थे कि हमारे सतगुरू देव जी ने राजा सिकंदर लोधी का असाध्य रोग आशीर्वाद मात्र से ठीक कर दिया। बादशाह सिकंदर ने स्वामी रामानन्द जी की गर्दन काट दी थी। उसको सतगुरू कबीर जी ने धड़ पर गर्दन जोड़कर जीवित कर दिया। एक कमाल नाम का लड़का मर गया था। उसके कबीले वालों ने अंतिम संस्कार रूप में दरिया में प्रवाह कर दिया था। शेखतकी जो राजा सिकंदर जी का धर्मगुरू है, उसको विश्वास नहीं था कि रामानंद जी की गर्दन काटने के पश्चात् भी कबीर जी ने जीवित कर दिया। वह राजा से कहता था कि कबीर जन्त्र-मन्त्र जानता है और कुछ नहीं है, मुर्दे कभी जिन्दे होते हैं। मेरे सामने कोई मुर्दा जिन्दा करे तो मानूँ। राजा सिकंदर को कबीर जी पर पूर्ण विश्वास था क्योंकि वह तो रोग से महादुःखी था तथा रामानन्द स्वामी जी को अपने हाथों से कत्ल किया था। उसके सामने कबीर जी ने जीवित किया था। उस दिन शेखतकी भी दरिया पर उपस्थित था। मुर्दे को देखकर कहा कि यदि मेरे सामने इस मुर्दे को जीवित कर दे तो मैं कबीर को अल्लाह का नबी मान लूँगा। कबीर जी ने कहा कि हे शेख जी! आप भी बड़े पहुँचे हुए पीर हो, आप कोशिश करो, बाद में कहोगे कि मैं भी कर देता। उपस्थित सर्व मन्त्रिायों और बादशाह ने भी यही कहा कि आप कौन-से छोटी हस्ती हो? कर दो काम। शेखतकी ने शर्म के मारे जन्त्र-मन्त्र किए, परंतु व्यर्थ। कहा कि मुर्दे जिन्दा नहीं हुआ करते। कबीर तो चाहता है कि मुर्दा बहकर दूर चला जाए और इज्जत रह जाए। वह चला गया मुर्दा। कबीर जी ने अपने हाथ का संकेत किया और कहा मुर्दा वापिस आओ। इन्जन वाली नौका के समान बालक का शव वापिस आ गया। कबीर जी ने कहा, हे जीवात्मा! जहाँ भी है, कबीर हुक्म से शव में प्रवेश कर और बाहर आओ। उसी समय वह 12 वर्षीय बालक जीवित होकर दरिया से बाहर आ गया। उपस्थित दर्शकों ने कहा, कबीर जी! कमाल कर दिया। बालक का नाम कमाल रख दिया। परमात्मा कबीर जी ने उस कमाल बालक को अपने घर बच्चे की तरह पाला। शेखतकी शर्म से पानी-पानी हो गया, परंतु माना नहीं। कहने लगा कि बालक को सदमा हुआ था। गलती से मृत मानकर जल प्रवाह कर दिया था। जब जानँू, मेरी बेटी कई दिनों से कब्र  में दबा रखी है। वह मृत्यु को प्राप्त हो चुकी है। उसको कबीर जीवित कर दे। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि दो दिन बाद तेरी बेटी को जीवित कर दूँगा। आसपास के गाँव तथा दिल्ली में मुनादी करा दो कि सब आकर देखें। ऐसा ही किया गया। कब्र तोड़ दी गई। कबीर परमेश्वर जी ने कहा, शेख जी! प्रयत्न करो, कहीं बाद में कहे कि लड़की सदमे में थी। उपस्थित जनता ने कहा कि कबीर जी! यदि शेख में शक्ति होती तो अपनी बेटी को कैसे मरने देता? आप कोशिश करो। कबीर जी ने कहा कि हे शेखतकी की बेटी! जीवित हो जा। लड़की जीवित नहीं हुई। ऐसा दो बार कहा। लड़की जीवित नहीं हुई। शेखतकी को अपनी बेटी के जीवित न होने का दुःख नहीं, कबीर जी की हार की खुशी मनाने लगा और ताली बजाते हुए नाचने लगा। कबीर जी ने कहा, हे जीवात्मा! जहाँ भी हो, कबीर हुक्म से अपने शरीर में प्रवेश कर और कब्र से बाहर आओ। कहने की देरी थी, उसी समय 12 वर्षीय कन्या के शरीर में हलचल हुई और लड़की उठकर बाहर आई और कबीर जी को दण्डवत् प्रणाम किया। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे शेखतकी की बेटी! अपने पिता के साथ घर जाओ। शेखतकी ने भी बेटी का हाथ पकड़ा और घर चलने को कहा। कन्या का नाम कमाली रखा क्योंकि उपस्थित जनता ने कहा, कमाल है, कमाल है। इसलिए कमाली नाम रखा। कमाली ने कहा कि शेखतकी की ओर से तो मैं यमराज के पास जा चुकी थी। अब तो मैं अल्लाह अकबर की बेटी हूँ। यह कबीर स्वयं अल्लाह है। इस प्रकार लड़की ने कबीर परमेश्वर जी के आशीर्वाद से 1) घण्टे तक प्रवचन किए। अपने पूर्व के जन्मों की जानकारी दी कि एक बार मैं राबिया थी। उस समय 12 वर्ष की आयु में कबीर जी मिले थे। मैंने 4 वर्ष इनकी बताई साधना की थी। फिर अपने मुसलमान धर्म वाली साधना करने लगी थी जो व्यर्थ थी। फिर मैं बांसुरी लड़की बनी। मक्के में अपना शरीर भी काटकर अर्पित कर दिया था। अगले जन्म में मैंने वैश्या का जीवन जीया। उन चार वर्ष की सत्यभक्ति से मुझे 2) जन्म मनुष्य के मिले थे। अब मेरा कोई मानव जीवन शेष नहीं था। पशु की योनि में जाना था। उसी समय परमेश्वर कबीर जी धर्मराज के पास गए और मुझे छुड़ाकर लाए और शरीर में प्रवेश कर दिया। इनकी कृपा से मुझे मानव जीवन मिला है। अब मैं अपने वास्तविक पिता अल्लाह कबीर जी के साथ रहूँगी। कबीर जी ने कमाली को बेटी की तरह पाला और अपने घर पर रखा। उपस्थित लाखों की सँख्या में दर्शकों ने परमेश्वर कबीर जी से दीक्षा ली। सबको प्रथम 5 मन्त्र का उपदेश दिया। इस प्रकार कबीर जी के उस समय 64 लाख शिष्य हो गए थे। वे चमत्कार देखकर ही शरण में आए थे। दिल्ली नगर की स्त्रिायाँ उनसे ये अनोखी बातें सुनकर बाद में चर्चा करती थी कि क्या ये बातें सम्भव हो सकती हैं? कुछ तो कहती थी कि हमारे घर वाला भी उस समय वहीं उपस्थित था। जब शेख की लड़की कब्र से निकालकर जीवित की गई थी, परंतु मेरा पति इस बात से नाराज हुआ कि कबीर क्यों ले गया लड़की को? जिसकी बेटी थी, उसको सौंप देनी थी। भावार्थ है कि कुल मिलाकर वे स्त्रिायां अंदर से मजाक रूप में मानती थी, परंतु उनके सम्मुख चुप रह जाती थी। पाठको! कथा लम्बी है, विषय दूसरा बताना है। इसलिए संक्षिप्त में बताता हूँ। एक दिन कबीर जी अपने साथ शेख फरीद तथा कमाल को लेकर सम्मन के घर आ गए। घर पर शाम का अन्न नहीं था। सम्मन तथा लड़का सेऊ आटा चोरी करने गए तो सेऊ को सेठ ने पकड़ लिया। आटा लेकर सम्मन घर आ गया। लड़के को सेठ ने पकड़कर थांब से बाँध दिया। कहा कि कल नगर इकट्ठा करके तुम्हें राजा के पेश करूँगा। तुम्हारे गुरू को भी सजा दिलवाऊँगा। वही चोरी कराने आता है। नेकी (पत्नी सम्मन) ने कहा कि तलवार ले जाओ, पुत्र का सिर काट लाओ। सम्मन ने ऐसा ही किया। नेकी पहले नगर से आटा उधार लेने गई थी। कारण बताया था कि हमारे सतगुरू आए हैं, उनके साथ दो भक्त भी हैं। तीन सेर आटा उधार दे दो। इसके बदले मेरा चीर (चुन्नी) ले लो। चीर फटा हुआ था। इस कारण से किसी ने वह नहीं लिया। व्यंग्य करने लगी कि आपका गुरू तो मुर्दे जीवित कर देता है, क्या तीन सेर आटा पेश नहीं कर सकता? नेकी मन में महादुःखी हुई। तब उसी ने दोनों को चोरी करने रात्रि में भेजा था। सेऊ का कत्ल हुआ देख लाला जी को भय हो गया कि यह तेरे सिर लगाएंगे। उसने रातों-रात बच्चे के धड़ को दूर पजावे (मैदानी भट्ठे) में घसीटकर डाल दिया। नेकी ने कहा कि सेठ बच्चे के धड़ को कहीं फैंकेगा, आप उसकी घसीट के निशान के साथ वहाँ जाकर उठा लाओ। सम्मन ने वैसा ही किया। धड़ को पीछे कोठे में रखकर फटी बोरी डाल दी। सिर अलमारी के ताख में रखा था। नेकी ने सुबह वक्त से खाना बनाया ताकि सतगुरू जी जल्दी निकल जाएं। नगर में कोई इनकी इज्जत का दुश्मन न हो जाए। खाना तीन पत्तलों में यानि मिट्टी के दोनों में डालकर सतगुरू तथा भक्तों को प्रसाद के लिए प्रार्थना की। कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि छः दोनों में प्रसाद डालो। सब मिलकर प्रसाद खाऐंगे। न चाहते हुए भी नेकी ने छः बर्तनों में खाना परोस दिया। पाँचों जने अपने-अपने दोनों पर खाने के लिए बैठ गए। सम्मन तथा नेकी चितिंत थे कि यदि गुरू जी को लड़के की मृत्यु का पता चल गया तो ये खाना नहीं खाएंगे, कल से भूखे हैं। इसलिए दिल करड़ा (मजबूत) किए थे, बता नहीं रहे थे।

उसी समय परमेश्वर कबीर जी ने कहा:-

आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद प्रेम। शीश कटत हैं चोरों के, साधों के नित क्षेम।।
सेऊ धड़ पर शीश चढ़ा, बैठा पंगत माहीं। नहीं घर्रा गर्दन में, वो सेऊ अक नाहीं।।
सेऊ के धड़ पर शीश लगा और गर्दन पर कटने का निशान भी नहीं था। सेऊ जीवित होकर
खाने की पंगत में बैठकर खाना खाने लगा।

।।जय हो परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी की।।

सम्मन वाली आत्मा नौशेर खान बना

नेकी और सेऊ तो उसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर गए, परंतु सम्मन के दिल पर ठेस लग गई कि यदि मेरे पास धन होता तो मुझे बेटा काटना ना पड़ता। परमात्मा ने उसी जन्म में सम्मन-नेकी-सेऊ को धन-धान्य से परिपूर्ण कर दिया था। वे निर्धन नहीं रहे थे। सम्मन दिल्ली का महान धनी व्यक्ति हो गया था, परंतु फिर भी मोक्ष की इच्छा नहीं बनी। जिस कारण से बेटे की कुर्बानी परमेश्वर रूप सतगुरू के लिए करने के कारण अगले जन्म में नौशेरखाँ शहर के राजा के घर जन्म लिया। राजा बना। 80 खजाने हीरे-मोतियों के भरे थे, परंतु दान नहीं करता था, न परमात्मा को याद करता था। परमेश्वर कबीर जी जिन्दा बाबा का वेश बनाकर नौशेरखान के बादशाह नौशेरखान के पास गए और दान करने का उपदेश दिया। राजा ने कहा, मैं निर्धन राजा हूँ। जिन्दा ने कहा कि आपके 80 खजानों को झंडे लगे हैं। यह राजा की पहचान होती थी कि जिसके पास जितने खजाने होते, उतने झण्डे खड़े किया करते।

राजा ने कहा, ये तो कोयले हैं। जिन्दा ने कहा कि जैसी तेरी नीयत है, कोयले हो जाएंगे। राजा ने खोलकर खजाने देखे तो सच में कोयले हो गए थे। राजा ने परमेश्वर के चरण पकड़कर क्षमा याचना की। परमेश्वर ने कहा कि यदि अधिक धन को दान करे तो ये फिर से हीरे-मोती बन जाएंगे। राजा ने कहा, जैसे आपकी आज्ञा, वही करूँगा। खजाने फिर से हीरों से भर गए। राजा नौशेरखान ने अधिक धन को दान किया। जिसके फलस्वरूप तथा पूर्व जन्म की भक्ति व संत सेवा के फलस्वरूप ईराक देश में बलख नामक शहर का राजा बना।

विस्तृत कथा आगे है:-

Sat Sahib