विकार जैसे काम, मोह, क्रोध, वासना नष्ट नहीं होते, शांत हो जाते हैं - सुल्तान बोध

‘‘विकार जैसे काम, मोह, क्रोध, वासना नष्ट नहीं होते, शांत हो जाते हैं‘‘

विकार मरे ना जानियो, ज्यों भूभल में आग। जब करेल्लै धधकही, बचे सतगुरू शरणा लाग।।

एक समय इब्राहिम सुल्तान मक्का में गया हुआ था। उनका उद्देश्य था कि भ्रमित मुसलमान श्रद्धालु मक्का में हज के लिए या वैसे भी आते रहते हैं। उनको समझाना था। उनको समझाने के लिए वहाँ कुछ दिन रहे। कुछ शिष्य भी बने। किसी हज यात्री ने बलख शहर में जाकर बताया कि इब्राहिम मक्का में रहता है। छोटे लड़के ने पिता जी के दर्शन की जिद की तो उसकी माता-लड़का तथा नगर के कुछ स्त्री-पुरूष भी साथ चले और मक्का में जाकर इब्राहिम से मिले। इब्राहिम अपने शिष्यों को शिक्षा देता था कि बिना दाढ़ी-मूछ वाले लड़के तथा परस्त्री की ओर अधिक देर नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने से उनके प्रति मोह बन जााता है। अपने लड़के को देखकर इब्राहिम पर रहा नहीं गया, एकटक बच्चे को देखता रहा। लड़के की आयु लगभग 13 वर्ष थी। शिष्यों ने कहा कि गुरूदेव आप हमें तो शिक्षा देते हो कि बिना दाढ़ी-मूछ वाले बच्चे की ओर ज्यादा देर नहीं देखना चाहिए, स्वयं देख रहे हो। इब्राहिम ने कहा, पता नहीं मेरा आकर्षण इसकी ओर क्यों हो रहा है? उसी समय एक वृद्ध ने कहा, राजा जी! यह आपकी रानी है और यह आपका पुत्र है। आप राज्य त्यागकर आए, उस समय यह गर्भ में था। आपसे मिलने आए हैं। उसी समय लड़का पिता के चरणों को छूकर गोदी में बैठ गया। इब्राहिम की आँखों में ममता के आँसूं छलक आए। परमेश्वर की ओर से आकाशवाणी हुई कि हे सुल्तानी! तेरे को मेरे से प्रेम नहीं रहा। अपने परिवार से प्रेम है। अपने घर चला जा। उसी समय इब्राहिम को झटका लगा तथा आँखें बंद करके प्रार्थना की कि हे परमात्मा! मेरे वश से बाहर की बात है, या तो मेरी मृत्यु कर दो या इस लड़के की। उसी समय लड़के की मृत्यु हो गई। इब्राहिम उठकर चल पड़ा। बलख से आए व्यक्ति लड़के के अंतिम संस्कार करने की तैयारी करने लगे। परमात्मा पाने के लिए भक्त को प्रत्येक कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है। तब सफलता मिलती है। उस लड़के के जीव को परमात्मा ने तुरंत मानव जीवन दिया और अपने भक्त के घर में लड़के को उत्पन्न किया। बचपन से ही उस आत्मा को परमात्मा का मार्ग मिला। एक बार सब भक्त बाबा जिन्दा के आश्रम में सत्संग में इकट्ठे हुए। वह लड़का उस समय 4 वर्ष की आयु का था। परमेश्वर की कृपा से उसका बिस्तर तथा इब्राहिम का बिस्तर साथ-साथ लगा था। इब्राहिम को देखकर लड़का बोला, पिताजी! आप मुझे मक्का में क्यों छोड़ आए थे? मैं अब भक्त के घर जन्मा हूँ। देख न अल्लाह ने मुझे आप से फिर मिला दिया। यह बात गुरू जी जिन्दा बाबा (परमेश्वर कबीर जी) के पास गई तो जिन्दा बाबा ने बताया कि यह इब्राहिम का लड़का है जो मक्का में मर गया था। अब परमात्मा ने इस जीव को भक्त के घर जन्म दिया है। इब्राहिम को लड़के के मरने का दुःख बहुत था, परंतु किसी को साझा नहीं करता था। उस दिन उसने कहा, कृपासागर! तू अन्तर्यामी है। आज मेरा कलेजा (दिल) हल्का हो गया। मेरे मन में रह-रहकर आ रहा था कि परमात्मा ने यह क्या किया? इसकी माँ घर पर किस मुँह से जाएगी? आज मेरी आत्मा पूर्ण रूप से शांत है। जिन्दा बाबा ने उस लड़की पूर्व वाली माता यानि इब्राहिम की पत्नी को संदेश भिजवाया कि वह आश्रम आए। लड़के तथा उसके नए माता-पिता तथा इब्राहिम को भी बुलाया। उस लड़के को पहले वाली माता से मिलाया। लड़का देखते ही बोला, अम्मा जान! आप मेरे को मक्का छोड़कर चली गई। वहाँ पर अल्लाह आए, देखो ये बैठे (जिन्दा बाबा की ओर हाथ करके बोला) और मेरे को साथ लेकर इनके घर छोड़ गए। मैं इस माई के पेट में चला गया। फिर मेरा जन्म हुआ। अब मैं दीक्षा ले चुका हूँ। प्रथम मंत्र का जाप करता हूँ। हे माता जी! आप भी गुरू जी से दीक्षा ले लो, कल्याण हो जाएगा। इब्राहिम की पत्नी ने दीक्षा ली और कहा कि इस लड़के को मेरे साथ भेज दो। परमेश्वर कबीर जी (जिन्दा बाबा) ने कहा कि यदि उस नरक में (राज की चकाचैंध में) रखना होता तो इसकी मृत्यु क्यों होती? अब तो आप आश्रम आया करो और महीने में सत्संग में बच्चे के दर्शन कर जाया करो। इब्राहिम को उस लड़के में अपनापन नहीं लगा क्योंकि वह किसी अन्य के शरीर से जन्मा था। परंतु उसके भ्रम, मन की मूर्खता का नाश हो गया। जो वह मन-मन में कहा करता कि अल्लाह ने यह नहीं करना चाहिए था। अब उसे पता चला कि परमात्मा जो करता है, अच्छा ही करता है। भले ही उस समय अपने को अच्छा न लगे। अल्लाह के सब जीव हैं, वह सबके हित की सोचता है। हम अपने-अपने हित की सोचते हैं। रानी को भी उस लड़के में वह भाव नहीं था, परंतु आत्मा वही थी। इसलिए माता वाली ममता दिल में जाग्रत थी। इसलिए उसको देखकर शांति मिलती थी। यह कारण बनाकर परमेश्वर जी ने उस रानी का भी उद्धार किया और बालक का भी।

‘‘भक्त तरवर (वृक्ष) जैसे स्वभाव का होता है‘‘

एक बार एक समुद्री जहाज में एक सेठ व्यापार के लिए जा रहा था। उसके साथ रास्ते का खाना बनाने वाले तथा मजाक-मस्करा करके दिल बहलाने वालों की पार्टी भी थी। लम्बा सफर था। महीना भर लगना था। मजाकिया व्यक्तियों को एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जिसके ऊपर सब मजाक की नकल झाड़ सकें। खोज करने पर इब्राहिम को पाया और पकड़कर ले गए। सोचा कि इस भिखारी को रोटियाँ चाहिए, मिल जाएंगी। समुद्र में दूर जाने के पश्चात् सेठ के लिए मनोरंजन का प्रोग्राम शुरू हुआ। इब्राहिम के ऊपर मजाक झाड़ रहे थे। कह रहे थे कि एक इस (इब्राहिम) जैसा मूर्ख था। वह वृक्ष की उसी डाली पर बैठा था जिसे काट रहा था। गिरकर मर गया। हा-हा करके हँसते थे। इस प्रकार बहुत देर तक ऐसी अभद्र टिप्पणियाँ करते रहे। 

इब्राहिम बहुत दुःखी हुआ। सोचा कि महीनों का दुःख हो गया। न भक्ति कर पाऊँगा, न चैन से रह पाऊँगा। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे भक्त इब्राहिम! यदि तू कहे तो इन मूर्खों को मार दूँ। जहाज को डुबो दूँ, तुझे बचा लूँ। ये तेरे को तंग करते हैं। यह आकाशवाणी सुनकर जहाज के सब व्यक्ति भयभीत हो गए। इब्राहिम ने कहा, हे अल्लाह! यह कलंक मेरे माथे पर न लगा। ये बेखबर हैं। इतने व्यक्तियों के मारने के स्थान पर मुझे ही मार दे या इनको सद्बुद्धि दे दो, ये आपकी भक्ति करके अपने जीव का कल्याण कराऐं। जहाज मालिक सहित सब यात्रियों ने इब्राहिम से क्षमा याचना की तथा परमात्मा का ज्ञान सुना। आदर के साथ अपने साथ रखा। भक्ति करने के लिए जहाज में भिन्न स्थान दे दिया। इब्राहिम ने उन सबको सत्यज्ञान समझाकर आश्रम में लाकर गुरू जी से दीक्षा दिलाई।

इब्राहिम स्वयं दीक्षा दिया करता था। जब जिन्दा बाबा यानि परमेश्वर कबीर जी को किसी ने इब्राहिम की उपस्थिति में बताया कि हे गुरूदेव! इब्राहिम दीक्षा देता है। तब परमेश्वर जी ने बताया कि हे भक्त! आप गलती कर रहे हो। आप अधिकारी नहीं हो। उस दिन के पश्चात् इब्राहिम ने दीक्षा देनी बंद की तथा अपने सब शिष्यों को पुनः गुरू जी से उपदेश दिलाया। क्षमा याचना की, स्वयं भी अपना नाम शुद्ध करवाया। भविष्य में एसी गलती नहीं की।

कबीर सागर के अध्याय ‘‘सुल्तान बोध’’ का सारांश सम्पूर्ण हुआ।

Sat Sahib