धर्मदास जी को सार शब्द देने का प्रमाण - अनुराग सागर

अनुराग सागर के पृष्ठ 126 का सारांश:-

धर्मदास जी को सार शब्द देने का प्रमाण

कबीर वचन

तब आयसु साहब अस भाखे। सुरति निरति करि आज्ञा राखे।।
पारस नाम धर्मनि लिखि देहू। जाते अंश जन्म सो लेहू।।
लखहु सैन मैं देऊँ लखाई। धर्मदास सुनियो चितलाई।।
लिखो पान पुरूष सहिदाना। आमिन देहु पान परवाना।।

भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे धर्मदास! अब आपका दृढ़ निश्चय हो गया है। तूने अपने पुत्रा को भी त्याग दिया है। अब मैं तेरे को पारस पान (सारनाम की दीक्षा) देता हूँ। आमिनी देवी को भी सारनाम देता हूँ।

धर्मदास वचन

भावार्थ:- वाणियों को पढ़ने से ही पता चलता है कि इनमें कृत्रिम वाणी है, लिखा है किः-

रति सुरति सो गरभ जो भयऊ। चूरामनी दास वास तहं लयऊ।।

इस वाणी से यह सिद्ध करना चाहा है कि सुरति से रति (ैमग) करने से चूड़ामणी का जन्म हुआ।

इस प्रकार कबीर सागर में अपनी बुद्धि के अनुसार यथार्थ वर्णन कई स्थानों पर नष्ट कर रखा है। इसके लिए जो मैंने (रामपाल दास) ने लिखा है, वही यथार्थ जानें कि परमेश्वर की शक्ति से धर्मदास तथा आमिनी के संयोग से पुत्रा चूड़ामणी का जन्म हुआ। कई कबीर पंथी जो दामाखेड़ा गद्दी वालों के मुरीद (शिष्य) हैं, वे कहते हैं कि चूड़ामणी के शरीर की छाया नहीं थी। जिस कारण से कहा जाता है कि उनका जन्म सुरति से हुआ है। यहाँ याद रखें कि श्री ब्रह्मा, महेश, विष्णु जी के शरीर की छाया नहीं होती। उनका जन्म भी दुर्गा देवी (अष्टांगी) तथा ज्योति निरंजन के भोग-विलास (sex) करने से हुआ। कबीर सागर के अध्याय ज्ञान बोध के पृष्ठ 21-22 पर वाणी हैः-

धर्मराय कीन्हें भोग विलासा। माया को रही तब आश।।
तीन पुत्रा अष्टांगी जाये। ब्रह्मा, विष्णु, शिव नाम धराये।।

इसलिए यह कहना कि चूड़ामणी जी के शरीर की छाया नहीं थी। इसलिए यह लिख दिया कि सुरति से रति (sex) किया गया था, अज्ञानता का प्रमाण है। कबीर सागर के अनुराग सागर के पृष्ठ 126 का सारांश किया जा रहा है। स्पष्टीकरण दिया है कि वाणी में मिलावट करके भ्रम उत्पन्न किया है। मेरी (रामपाल दास) की सेवा इसलिए परमेश्वर जी ने लगाई है कि सब अज्ञान अंधकार समाप्त करूं। कबीर बानी अध्याय में कबीर सागर के पृष्ठ 134 पर भी परमेश्वर कबीर जी ने स्पष्ट किया है कि तेरहवें अंश मिटै सकल अंधियारा। अब आध्यात्मिक ज्ञान को पूर्ण रूप से स्पष्ट करके प्रमाणित करके आपके रूबरू कर रहा हूँ।

अनुराग सागर के पृष्ठ 127-128 का सारांश:-

इन दोनों पृष्ठों पर वृतान्त यह है कि परमेश्वर कबीर जी ने चूड़ामणी जी को दीक्षा दी तथा गुरू पद दिया। कहा कि हे धर्मदास! तेरे बयालीस वंश का आशीर्वाद दे दिया है और तेरे वंश मेरे वचन अंश चूड़ामणी को कड़िहार (तारणहार) का आशीर्वाद दे दिया है। तेरे वंश से दीक्षा लेकर जो मर्यादा में रहकर भक्ति करेगा, उसका कल्याण हो जाएगा। परंतु सार शब्द इस दीक्षा से भिन्न है। मैंने 14 कोटि ज्ञान कह दिया है, परंतु सार शब्द इनसे भिन्न है। अन्य नाम तो तारे जानो।
सार शब्द को सूर्य जानो।

अनुराग सागर के पृष्ठ 129 का सारांश:-

धर्मदास वचन

धर्मदास विनती अनुसारी। हे प्रभु मैं तुम्हरी बलिहारी।।
जीवन काज वंश जग आवा। सो साहिब सब मोहि सुनावा।।
वचन वंश चीन्हे जो ज्ञानी। ता कह नहीं रोके दुर्ग दानी।।
पुरूष रूप हम वंशहि जाना। दूजा भाव न हृदये आना।।
नौतम अंश परगट जग आये। सो मैं देखा ठोक बजाये।।
तबहूँ मोहि संशय एक आवे। करहु कृपा जाते मिट जावे।।
हमकहँ समरथ दीन पठायी। आये जग तब काल फसायी।।
तुम तो कहो मोहि सुकृत अंशा। तबहूँ काल कराल मुहिडंसा।।
ऐसहिं जो वंशन कहँ होई। जगत जीव सब जाय बिगोई।।
ताते करहु कृपा दुखभंजन। वंशन छले नहिं काल निरंजन।।
और कछू मैं जानौं नाहीं। मोरलाज प्रभु तुम कहँ आही।।

भावार्थ:- धर्मदास जी ने शंका की और समाधान चाहा कि हे परमेश्वर जी! आपने मेरे वंश (बिन्द वालों) को कड़िहार (नाद दीक्षा देकर मोक्ष करने वाला) बना दिया। मुझे एक शंका है कि जैसे आपने मुझे कहा है कि तुम सुकृत अंश हो, संसार में जीवों के उद्धार के लिए भेजा है। आगे मेरे को काल ने फंसा लिया। आप मुझे सुकृत अंश कहते हो तो भी मेरे को काल कराल ने डस लिया यानि अपना रंग चढ़ा दिया। मैं (धर्मदास) काल के पुत्रा श्री विष्णु पर पूर्ण कुर्बान था। आपने राह दिखाया और मुझे बचाया। कहीं काल मेरे वंश वालों के साथ भी छल कर दे तो संसार के जीव कैसे पार होंगे? वे सब नष्ट हो जाएंगे। इसलिए हे दुःख भंजन! ऐसी दया करो कि मेरे वंश वालों को काल निरंजन न ठगे। मैं और अधिक कुछ नहीं जानता, मेरी लाज आपके हाथ में है।

कबीर वचन

अनुराग सागर पृष्ठ 130 से 137 का सारांश:-

कबीर परमेश्वर जी ने बताया कि हे धर्मदास! काल बड़ा छलिया है। इसने पहले तो मेरे तीन युगों में जीव थोड़े पार करने तथा कलयुग में जितने मर्जी पार कर देना, यह वर माँग लिया। बाद में कहा कि मेरे अंश (काल के दूत) पहले भेजूंगा जो तेरे (कबीर) नाम से 12 पंथ चलाएंगे। उनके चार मुखिया होंगे। अन्य भी होंगे। उसने अपने चार मुख्य दूतों से कहा कि जगत में मेरा शत्राु कबीर जाएगा। वह कबीर नाम से पंथ चलाएगा। भवसागर उजाड़ना चाहता है। कोई अन्य लोक सुखदायी तथा अन्य सतपुरूष बताएगा। वह झूठ बोलता है, तुम जाओ, मेरी भक्ति दृढाओ। इस प्रकार उसने (काल निरंजन ने) अपने दूत भेजे हैं। बताया है कि कबीर जम्बूद्वीप (भारत) में अपना पंथ चलाएगा। तुम कबीर नाम से 12 नकली पंथ चलाना। काल ने अपने दूतों को समझाकर पृथ्वी पर जाने के लिए चार मुख्य दूत हैं - रंभ, कूरंभ, जय तथा विजय।

ये सब जालिम हैं। इनमें ‘‘जय‘‘ नामक दूत अधिक दुष्ट है। वह तेरे वंश को भ्रमित करेगा। बांधवगढ़ के पास गाँव कुरकुट में चमार जाति में जन्म लेगा। साहब दास नाम कहावैगा। इसका पुत्र गणपति नाम का होगा। ये दोनों तेरी गद्दी वालों यानि वंश छाप वालों को भ्रमित करेंगे। वे झंग शब्द का उच्चारण करेंगे, यही दीक्षा मंत्रा होगा। काल ने एक झांझरी द्वीप की रचना कर रखी है। उसमें काल का बाजा बजता है, वही काल लोक वाली भंवर गुफा में सुनता है। आरती चैंका करेंगे और अपने पंथ को वास्तविक कबीर पंथ बताकर तेरे वंश को विचलित करेंगे।
 

Sat Sahib