धर्मदास जी के दूसरे पुत्र चूड़ामणी की उत्पत्ति - अनुराग सागर

अनुराग सागर पृष्ठ 124 का सारांश:-

धर्मदास वचन

हे प्रभु तुम जीवन के मूला। मेटहु मोर सकल दुख शूला।।
आहि नरायन पुत्रा हमारा। अब हम तहँकर दीन्हा निकारा।।
काल अंश गृह जन्मों आई। जीवन काज होवै दुखदाई।।
धन सतगुरू तुम मोहि लखावा। काल अंशको भाव चिन्हावा।।
पुत्रा नरायना त्यागी हम दीन्हा। तुमरो वचन मानि हम लीना।।

धर्मदास साहब को अन्शका दर्शन होना

धर्मदास विनवै सिर नाई। साहिब कहो जीव सुखदाई।।
किहि विधि जीव तरै भौसागर। कहिये मोहि हंसपति आगर।।
कैसे पंथ करौं परकासा। कैसे हंसहिं लोक निवासा।।
दास नरायन सुत जो रहिया। काल जान ताकँइ परिहरिया।।
अब साहिब देहु राह बताइ। कैसे हंसा लोक समाई।।
कैसे बंस हमारो चलि है। कैसे तुम्हरो पंथ अनुसरि है।।
आगे जेहिते पंथ चलाई। ताते करो विनती प्रभुराई।।

भावार्थ:- कुछ वाणी काटी गई हैं। इसलिए वह प्रसंग बताता हूँ। धर्मदास जी को विश्वास नहीं हुआ कि नारायण दास वास्तव में काल दूत है। तब कबीर परमेश्वर जी से व्याकुल तथा पुत्र मोह से ग्रस्त होकर कहा कि हे सतगुरू जी! आप जो कहते हैं वह गलत नहीं हो सकता, परंतु मेरा मन मुझे परेशान कर रहा है कि नारायण दास तो भगवान का परम भक्त है। यह काल का दूत नहीं हो सकता। ऐसी करो गुरूदेव मेरी शंका समाप्त हो। परमेश्वर जी ने कहा कि हे धर्मदास! आप नारायण दास को फिर बुलाओ और दोनों पति-पत्नी तुम आओ। जैसे-तैसे नारायण दास बुलाया। परमेश्वर कबीर जी ने नारायण दास की प्रसंशा की। कहा कि धर्मदास! तेरे घर प्रभु का परम भक्त जन्मा है। यह जो भक्ति कर रहा है, करने दो, देख इसके मस्तिक की रेखा। दोनों (आमिनी तथा धर्मदास) देखो। ऐसी रेखा करोड़ों में एक की होती है। धर्मदास तथा आमिनी ने देखा कि नारायण दास का स्वरूप भयानक था। ओछा माथा और लंबे दाँत, काला शरीर। उसके ऊपर नारायण दास के भौतिक शरीर का कवर था जो पहले हटता दिखा, फिर लिपटता दिखा। अपने पुत्रा रूप में काल के दूत को आँखों देखकर धर्मदास तथा आमिनी देवी ने एक सुर में कहा कि जाओ पुत्रा! जैसी भक्ति करना चाहो करो, परंतु घर त्यागकर मत जाना। लोग हमें जीने नहीं देंगे। नारायण दास चला गया। कबीर साहब ने कहा कि हे धर्मदास! यह कहीं जाने वाला नहीं है। अब ऊपर लिखी अनुराग सागर के पृष्ठ 124 की वाणियों का सरलार्थ करता हूँ। 

भावार्थ:- धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से निवेदन किया कि हे प्रभु! आप तो सर्व प्राणियों के जनक हैं। मेरे मन की शंका दूर करो। नारायण तो काल का अंश। यह तो मैंने दिल से उतार दिया। और पुत्रा है नहीं। नारायण दास की संतान काल प्रेरित रहेगी। इस प्रकार तो मेरा वंश काल वंश होगा। आपने कहा कि मेरा वंश बयालीस पीढ़ी तक चलेगा। हे परमात्मा! ये तो काल कुल होगा। आपने कहा है कि तू धर्मदास मेरे (कबीर जी के) पंथ को आगे बढ़ाना सो वह कैसे संभव हो सकेगा?

अनुराग सागर के पृष्ठ 125 का सारांश:-

कबीर वचन

धर्मदास सुनु शब्द सिखापन। कहों संदेश जानि हित आपन।।
नौतम सुरति पुरूष के अंशा। तुव गृह प्रगट होइ है वंशा।।
वचन वंश जग प्रगटे आई। नाम चुणामणि ताहि कहाई।।
पुरूष अंश के नौतम वंशा। काल फन्द काटे जिव संशा।।

छन्द

कलि यह नाम प्रताप धर्मनि, हंस छूटे कालसो।।
सत्तनाम मन बिच दृढ़गहे, सोनिस्तरे यमजालसो।।
यम तासु निकट न आवई, जेहि बंशकी परतीतिहो।
कलि काल के सिर पांदै, चले भवजल जीतिहो।।
सोरठा-तुमसों कहों पुकार, धर्मदास चित परखहू।।
तेहि जिव लेउँ उबार वचन जो वंश दृढ़ गहे।।

भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि तेरे घर मेरे वचन से तेरी पत्नी के गर्भ से एक पुत्रा का जन्म दसवें महीने होगा। उसका नाम चूड़ामणी रखना। वैसे उसका नाम नोतम दास है। (मीनी सतलोक में काल लोक में भी परमेश्वर कबीर जी ने एक सतलोक की रचना की है जैसे राजदूत भवन प्रत्येक देश में प्रत्येक देश का होता है, उसका प्रसिद्ध नाम सतगुरू लोक है। वहाँ से चुड़ामणि वाला जीव भेजा जाएगा।) उसको मैं स्वयं दीक्षा तथा गुरू पद प्रदान करूँगा।

अनुराग सागर के पृष्ठ 125 का सारांश:-

धर्मदास वचन

भावार्थ:- धर्मदास जी ने कहा कि यदि उस अंश के एक बार दर्शन हो जाएं तो मन का सब संशय समाप्त हो जाएगा। आपके वचन पर विश्वास हो जाएगा।

कबीर परमेश्वर वचन

भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे मुक्तामणी! तू मेरा नामक अंश है। मेरे से सुकृत ने तेरे दर्शन का हठ किया है। एक बार शिशु रूप में इसके आंगन में प्रकट हो और फिर वापिस जाओ। {सतगुरू लोक यानि मीनी सतलोक से धर्मदास जी वाली आत्मा आई थी। वहाँ पर इनकी आत्मा का नाम सुकृत है। उस लोक के हंस इसी नाम से जानते हैं। सतगुरू लोक में जो हंस हैं, वे पार नहीं हुए हैं। उनकी भक्ति अधूरी रहती है, वे अंकुरी हंस हैं। अब कलयुग की बिचली पीढ़ी (कलयुग 5505 वर्ष बीतने के पश्चात् सन् 1997 से प्रारम्भ हुई है) में पृथ्वी पर जन्म लेंगे। यदि मेरे (रामपाल दास) से दीक्षा लेंगे, वे सर्व सतलोक चले जाएंगे।} परमेश्वर कबीर जी के कहते ही एक शिशु धर्मदास के घर के आँगन में पृथ्वी से एक फुट ऊपर दिखाई दिया। एक पैर का अंगूठा मुख में, एक को हिला रहा था। फिर तुरंत चला गया। धर्मदास तथा आमिनी देवी अति हर्षित हुए। परमेश्वर के चरणों में दण्डवत् प्रणाम किया।

धर्मदास वचन

भावार्थ:- हे परमात्मा! मेरी आयु अति वृद्ध हो चुकी है। उस समय धर्मदास जी की आयु लगभग 85 वर्ष की थी। आगे कैसे वंश चलेगा?

कबीर वचन

भावार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि यह जो शिशु आपने देखा था। वह तेरी पत्नी के गर्भ से दसवें महीने जन्म लेगा। जो यह तुम्हारा पुत्रा होगा, यह हमारा अंश होगा। जो मैंने तेरे को सतनाम तथा सारनाम दिया है। वह भंडार है, उसको उसे देना जिसे मैं कहूँ।

धर्मदास वचन

भावार्थ:- हे प्रभु! मेरी इन्द्री शिथिल हो चुकी है। अब कैसे लड़का उत्पन्न होगा? {स्पष्टीकरण:- इन वाणियों में मिलावट है जो लिखा है कि मैंने इन्द्री वश किन्हीं हैं, पुत्र कैसे होगा। यह गलत है। इन्द्री वश करने का अर्थ है संयम रखना। परंतु ऐसी आवश्यकता पड़ने पर संतानोत्पत्ति के लिए इन्द्री तो सक्रिय ही होती है। वास्तविकता यह थी कि वृद्ध अवस्था का हवाला देकर प्रश्न किया था। परंतु इतिहास गवाह है कि 80.90 वर्ष के व्यक्ति ने भी संतानोत्पत्ति की है। जिनका स्वास्थ्य ठीक चल रहा हो। फिर भी परमात्मा जो चाहे, कर सकते हैं। बांझ को संतान। नपुसंक को भी मर्द बना सकते हैं। यहाँ पर इतना ही समझना पर्याप्त है।

Sat Sahib