अनुराग सागर पृष्ठ 138 से 142 तक का सारांश:-
अनुराग सागर के पृष्ठ 138 से 142 के सरलार्थ की विस्तृत जानकारी तथा ‘‘दीक्षा देने की विधि कबीर सागर के अनुसार‘‘ कृप्या पढ़ें इसी पुस्तक ‘‘कबीर सागर का सरलार्थ‘‘ में ज्ञान सागर के सारांश में क्रमशः पृष्ठ 77 से 80 तक, पृष्ठ 92 से 108 तक।
संक्षिप्त वर्णन यहाँ करना भी अनिवार्य है जो इस प्रकार है:-
पृष्ठ 138 पर ‘‘भविष्य कथन अलग व्यौहार‘‘:-
परमेश्वर कबीर जी ने कहा है कि हे धर्मदास! जो कुछ आगे तेरे वंश में होगा और कैसे तेरे बयालीस वंश तथा जगत के अन्य जीवों को पार करूँगा। जो कुछ आगे होय है भाई। सो चरित्र तोहि कहूं बुझाई।। जो आगे होगा, वह चरित्रा पूछो धर्मदास। जब तक तुम शरीर में रहोगे, तब तक काल निकट नहीं आएगा। तेरे शरीर त्यागने के पश्चात् काल तेरे कुल (वंश) के निकट आएगा और तेरे वंश का यथार्थ नाम दीक्षा खंडित करेगा। तेरे वंश वालों में यह अभिमान होगा कि हम धर्मदास के कुल के हैं, हम सबके तारणहार हैं। आपस में तो झगड़ा करेंगे ही, वे जो मेरा भेजा नाद (वचन का पुत्रा यानि शिष्य) परंपरा वाले से जो मेरा सुपंथ (यथार्थ कबीर पंथ) चलाएगा, उसकी निंदा करके पाप के भागी होंगे, पार तो हो ही नहीं सकेंगे। इसलिए अपने वंश को समझा देना कि जब काल का दाॅव लग जाए, वंश परंपरा कुपंथ पर चले तो मैं अपना नाद (शिष्य) परम्परा का अपना अंश भेजूंगा, उसको प्रेम से मिलें और उससे दीक्षा ले लें। जैसे मेरा पुत्र कमाल था जिसको मैंने मृतक से जीवित किया था। उसको दीक्षा भी दी थी। वह स्वयंभू गुरू बन गया था। अपना जीवन नष्ट किया और अनेकों को भी ले डूबा। (विस्तार से वर्णन अध्याय ‘‘कमाल बोध‘‘ के सारांश में पृष्ठ 431 से 437 पर पढ़ें।)
पृष्ठ 139 पर:-
कमाल को अभिमान हो गया था। मैंने उसको त्याग दिया था। मेरे को अहंकारी प्राणी पसंद नहीं हैं। हम तो भक्ति के साथी हैं, हाथी-घोड़ों को नहीं चाहता। जो प्रेम भक्ति करता है, उसको हृदय में रखता हूँ। इसलिए नाद पुत्रा को (शिष्य परंपरा वाले को) दीक्षा देने का अधिकार यानि गुरू पद सौंपूंगा। मेरा पंथ नाद से ही उजागर होगा यानि प्रसिद्ध होगा। तेरे वंश वाले बहुत अहंकार करेंगे। धर्मदास जी ने चिंता जताई कि आप नाद वाले को गुरू पद दोगे, परंतु मेरे वंश वाले कैसे मोक्ष प्राप्त करेंगे? परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि तेरे वंश वाले हों, चाहे अन्य जीव हों, जो मेरे द्वारा भेजे अंश (नाद अंश) से दीक्षा लेकर मर्यादा में रहेंगे तो कैसे पार नहीं होंगे? जो हमारे वचन को मानेगा, वही वंश वाला मुझे प्यारा लगेगा। बिना वचन यानि नाद वाले को गुरू माने बिना पार नहीं हो सकता, मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। तेरे बयालीस (42) पीढ़ी को मैंने एक वचन से पार कर दिया है। वह वचन यह है कि (नाद परंपरा) वाले से दीक्षा लेकर पार हो जाएंगे। बिन्द वाले वंश कहलाते हैं और वचन (नाद) वाले बिना वे अपने घर यानि सतलोक नहीं जा सकते।
अनुराग सागर पृष्ठ 140 का सारांश:-
(कबीर वचन ही चल रहे हैं)
परमेश्वर कबीर जी बता रहे हैं कि मेरा नाद का पुत्रा चूड़ामणी है। यह मेरा शिष्य है और आपका वंश (बिन्द) पुत्रा है। यह मेरी आज्ञा से पंथ चलाएगा, जीवों का कल्याण करेगा। परंतु हे धर्मदास! तेरा वंश (कुल) के लोग अज्ञानी हैं। वे ठीक से ज्ञान नहीं समझेंगे। मेरे अंश को (जो मैं भेजूंगा) नहीं समझ सकेंगे और अन्य काल के दूतों से भ्रमित होकर कुमार्ग पर चलेंगे। जो कुछ आगे तेरी वंश गद्दी वालों के साथ होगा, वह सुन! चूड़ामणी के पश्चात् छठी पीढ़ी वाले महंत को काल द्वारा चलाए गए 12 पंथों में से पाँचवां टकसारी पंथ होगा, वह ठगेगा। अपना ज्ञान सुनाकर प्रभावित करके काल जाल में डालेगा। तेरा छठी पीढ़ी वाला (पोता) उस टकसारी पंथ वाले से दीक्षा लेगा और उसी वाला आरती-चैंका किया करेगा। (वही हुआ, वर्तमान में जो दीक्षा बाँधवगढ़ गद्दी वाले महंत दे रहे हैं तथा जो आरती-चैंका कर रहे हैं, वह वही काल के दूत टकसारी वाली है) हे धर्मदास! इस प्रकार तेरा वंश अज्ञानी होकर काल के धोखे में पड़कर नरक में जाएगा। तेरा वंश मेरी वह दीक्षा जो मैंने चूड़ामणी को दी है, उसको छोड़ देगा। टकसारी वाली दीक्षा लेकर अपना जीवन नाश करेगा। ऐसे तेरा वंश (कुल) दुर्मति को प्राप्त होगा। वे तेरे वंश वाले ठग मेरे नाद अंश को बाधित करेंगे, पाप के भागी होंगे।
धर्मदास वचन
हे परमात्मा! पहले तो आप कह रहे थे कि तेरे बयालीस पीढ़ी को पार कर दूंगा। अब आप कह रहे हो कि काल जाल में फंसेगे। ये दोनों बात कैसे सत्य होंगी?
कबीर जी वचन
परमेश्वर कबीर जी ने कहा हे धर्मदास! तुम सावधान होवो और अपने वंश को समझा देना कि जिस समय काल झपट्टा लगाएगा यानि मार्ग से तेरे वंश को भ्रमित करेगा तो मैं अपना नाद यानि शिष्य परंपरा वाला हंस प्रकट करूंगा। यथार्थ कबीर पंथ यानि भक्ति मार्ग से भटके मानव को सत्य भक्ति पर दृढ़ करूंगा। उसी से दीक्षा लेकर तेरे वंश वाले मोक्ष प्राप्त करेंगे। वचन वंश (चुड़ामणि की संतान) भी नाद यानि शिष्य शाखा वाले से दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्ति करेगा। विशेष विवेचन:- कुछ व्यक्ति इस प्रकरण को सुनकर भ्रम फैलाते हैं कि रामपाल के बिन्द वालों से इस पंथ का नाश होगा। हम रामपाल के नाद वाले (शिष्य) हैं। हमारे से यह पंथ आगे फैलेगा। हमें दान का पैसा दो, रामपाल वालों को न दो। ऐसे व्यक्ति काल के दूत हैं। वे अपने स्वार्थवश ऐसा भ्रम फैलाते हैं। मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि धर्मदास के बिन्द वाले गुरू पद प्राप्त करके भक्ति विधि में परिवर्तन करके सत्य साधना त्यागकर काल साधना करते-कराते हैं। भक्ति विधि तथा ज्ञान गलत होने से यथार्थ पंथ का नुकसान (Ðास) होता है। मेरे पश्चात् कलयुग में कोई गुरू पद पर रहेगा ही नहीं। यह तेरहवां (13वां) अंतिम पंथ है। यह दास (रामपाल दास) अंतिम सतगुरू है। मेरे प्रकाश पुंज (म्समबजतवदपब) शरीर यानि क्टक् वाले स्वरूप से नाद दीक्षा दी जा रही है। यही आगे चलेगी। यह प्रक्रिया सन् 2009 से चल रही है। लाखों अनुयाई बन चुके हैं। प्रत्येक को लाभ हो रहा है और होता रहेगा। अब न तो भक्ति विधि यानि भक्ति के मंत्रा बदल सकते हैं, न ज्ञान। फिर पंथ नष्ट होने का प्रश्न ही नहीं रहता। नाद और बिंद का झंझट ही समाप्त हो गया है। क्टक् से गुरू जी के नाम को दिलाने की सेवा नाद वालों को मिले, चाहे बिन्द वालों को, पंथ नष्ट नहीं हो सकता। आगे ही बढ़ेगा।
अनुराग सागर पृष्ठ 141 का सारांश:-
सार शब्द की चास यानि अधिकार नाद के पास होगा। यदि तेरा बिंद (पुत्र परंपरा) उससे दीक्षा नहीं लेंगे तो वे नष्ट हो जाएंगे। परमेश्वर कबीर जी ने नाद की परिभाषा स्पष्ट की है। कहा है कि हे धर्मदास! तू मेरा नाद पुत्रा (वचन पुत्रा यानि शिष्य) है। इसलिए तेरे को मुक्ति मंत्रा यानि सार शब्द दे दिया है। परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को दीक्षा देने का अधिकार नहीं दिया था और सख्त निर्देश दिया था कि जो सार शब्द मैंने तेरे को दिया है, यह किसी को नहीं बताना है। यदि यह तूने बता दिया तो जिस समय बिचली पीढ़ी कलयुग में चलेगी यानि जिस समय कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा (सन् 1997 में) तब मैं अपना नाद अंश भेजूंगा। मेरा यथार्थ कबीर पंथ चलेगा। उस समय से पहले यदि यह सार शब्द काल के दूतों के हाथ लग गया तो सत्य-असत्य भक्ति विधि का ज्ञान कैसे होगा? जिस कारण से भक्त पार नहीं हो पावेंगे। कबीर सागर में ‘‘कबीर बानी’’ अध्याय के पृष्ठ 137 पर तथा अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध’’ पृष्ठ 1937 पर प्रमाण है जिसमें कहा है कि:-
धर्मदास मेरी लाख दुहाई, सार शब्द कहीं बाहर नहीं जाई।
सार शब्द बाहर जो परही, बिचली पीढ़ी हंस नहीं तिरही।।
सार शब्द तब तक छिपाई, जब तक द्वादश (12) पंथ न मिट जाई।।
स्वस्मबेद बोध पृष्ठ 121 तथा 171 पर कहा है कि:-
चैथा युग जब कलयुग आई। तब हम अपना अंश पठाई।।
काल फंद छूटे नर लोई। सकल सृष्टि परवानिक होई।।
घर-घर देखो बोध विचारा (ज्ञान चर्चा)। सत्यनाम सब ठौर उचारा।।
पाँच हजार पाँच सौ पाँचा। तब यह वचन होयगा साचा।।
कलयुग बीत जाय जब ऐता। सब जीव परम पुरूष पद चेता।।
प्रिय पाठको! कलयुग सन् 1997 में 5505 वर्ष पूरा कर गया है। यहाँ तक सार शब्द छुपाकर रखना था।
बीच-बीच में धर्मदास जी वंश मोह में आकर सार शब्द अपने पुत्रा चूड़ामणी जी को बताना चाहते थे। उसी समय अंतर्यामी परमेश्वर कबीर जी प्रकट होकर कुछ दिन साथ रहकर उसको दृढ़ करते थे। अंत में धर्मदास जी को जगन्नाथ पुरी में जीवित समाधि दे दी यानि जीवित ही पृथ्वी में दबा दिया। धर्मदास जी ने स्वयं कबीर जी से कहा था कि हे परमेश्वर! मैं पुत्र मोह वश होकर सार शब्द बता सकता हूँ। मेरे वश से बाहर की बात हो चुकी है। आप मुझे सत्यलोक भेज दो नहीं तो बात बिगड़ जाएगी। तब धर्मदास जी को जीवित समाधि दी गई थी। (यह प्रमाण दामाखेड़ा वाले महंत द्वारा छपाई पुस्तक ‘‘आशीर्वाद शताब्दी ग्रन्थ’’ में पृष्ठ 95 पर है।) अनुराग सागर के पृष्ठ 141 का शेष सारांश:-
कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हे धर्मदास! चारों युगों में देख ले, मेरे यथार्थ कबीर पंथ को नाद परंपरा ने प्रसिद्ध किया है। क्या निर्गुण क्या सर्गुण है, नाद बिन पंथ नहीं चलेगा। यदि तेरे बिन्द वाले उससे दीक्षा लेंगे तो वे भी पार हो जाएंगे। तेरे बिन्द वालों को इस प्रकार बयालीस पीढ़ी को पार करूंगा। जब कलयुग 5505 वर्ष पूरा करेगा। उसके पश्चात् सर्व विश्व दीक्षित होगा तो धर्मदास जी के वंशज भी दीक्षा लेकर कल्याण कराएंगे। (यदि नाद की आशा बिन्द (परिवार वंश) वाले छोड़ देंगे तो तेरे बिंद (पीढ़ी) वाले काल जाल में फंसेंगे।) इसलिए हे धर्मदास! अपने बिन्द को सतर्क कर देना। अपना कल्याण कराऐं। परमेश्वर कबीर जी का कहना है कि बिन्द वाले नाम को बदलकर यथार्थ भक्ति नष्ट कर देते हैं। वर्तमान में वह समस्या नहीं रहेगी क्योंकि अब कोई उतराधिकारी गुरू रूप नहीं होगा। दीक्षा क्ण्टण्क्ण् से दी जा रही है। नाम दीक्षा दिलाने की सेवा चाहे नाद वाले करो, चाहे बिन्द वाले, भक्ति विधि सही रहेगी। इसलिए पंथ को कोई हानि नहीं होगी।
अनुराग सागर के पृष्ठ 142 का सारांश:-
परमेश्वर कबीर जी अपने भक्त धर्मदास जी को समझा रहे हैं कि जो कोई नाद वंश को जान लेगा, उसको यम के दूत रोक नहीं पाएंगे। जिन्होंने सत्य शब्द (सतनाम) को पहचान लिया, वे ही मोक्ष प्राप्त कर सकेंगे। तेरे वंश वाले जो चूड़ामणी की संतान हैं, वही सफल होगा जो नाद वंश की शरण न छोड़े। तुम्हारा बिन्द यानि संतान नाद यानि शिष्य परंपरा वाले के साथ मोक्ष प्राप्त करेगी।
धर्मदास वचन
धर्मदास जी ने प्रश्न किया कि आपने मेरे पुत्र चूड़ामणी को वचन वंश कहा है क्योंकि यह आप जी के वचन यानि आशीर्वाद से उत्पन्न हुआ। इसकी संतान को बिन्द कहा जो मेरे बयालीस पीढ़ी चलेगी। आप यह भी कह रहे हो कि मेरे बिन्द परंपरा यानि महंत गद्दी वाले नाद यानि शिष्य परंपरा वालों से दीक्षा लेकर पार हो सकते हैं। वे आप जी ने नाद वंश के आधीन बता दिए। फिर बिन्द वाले क्या करेंगे? यदि नाद से ही जगत पार होना है।
कबीर वचन
धर्मदास जी के वचन सुनकर परमेश्वर हँसे और कहा कि हे धर्मदास! तेरे को बयालीस वंश का आशीर्वाद दे दिया है क्योंकि तुम नारायण दास को काल दूत जानकर वंश नष्ट होने की चिंता कर रहे हो। इसलिए तेरे वंश की शुरूआत आपके नेक पुत्रा से की है। पाठकों से निवेदन है कि इस पृष्ठ पर बिन्द परंपरा वालों ने बनावटी वाणी अधिक डाली हैं अपनी महिमा बनाने के लिए, परंतु अनुराग सागर के पृष्ठ 140.141 पर स्पष्ट कर दिया है कि चूड़ामणी जी की वंश गद्दी की छठी पीढ़ी वाले के पश्चात् मेरे द्वारा बताई यथार्थ भक्ति विधि तथा भक्ति मंत्र नहीं रहेंगे। वह पाँचवी पीढ़ी वाला ‘‘टकसारी‘‘ पंथ वाला आरती-चैंका तथा वही नकली पाँच नाम की दीक्षा देने लगेगा। इसलिए तेरे बिन्द वाले काल जाल में जाएंगे। यदि वे मेरे द्वारा भेजे गए नाद अंश से दीक्षा ले लेंगे तो तेरी बयालीस (42) पीढ़ी मोक्ष प्राप्त करेगी। इस प्रकार तेरे 42 वंश को पार करूंगा। उस समय जब पूरा जगत ही दीक्षा प्राप्त करेगा तो तेरी संतान भी दीक्षा लेगी। यह वर्णन पृष्ठ 140.141 के सारांश में स्पष्ट कर दिया है।
अनुराग सागर के पृष्ठ 143 का सारांश:-
धर्मदास जी को फिर से अपने पुत्रा नारायण दास का मोह सताने लगा और परमेश्वर कबीर जी से अपनी चिंता व्यक्त की कि मेरा पुत्रा नारायण दास काल के मुख में पड़ेगा। मुझे अंदर ही अंदर यह चिंता खाए जा रही है। हे स्वामी! उसकी भी मुक्ति करो।
कबीर परमेश्वर वचन
बार बार धर्मनि समुझावा। तुम्हरे हृदय प्रतीत न आवा।।
चैदह यम तो लोक सिधावें। जीवन को फन्द कह्यो वे लावें।।
अब हम चीन्हा तुम्हारो ज्ञाना। जानि बूझि तुम भयो अजाना।।
पुरूष आज्ञा मेटन लागे। बिसरयो ज्ञान मोहमद जागे।।
मोह तिमिर जब हिरदे छावे। बिसर ज्ञान तब काज नसावे।।
बिन परतीत भक्ति नहिं होई। बिनु भक्ति जिव तरै न कोई।।
बहुरि काल फांसन तोहि लागा। पुत्रामोह त्व हिरदय जागा।।
प्रतच्छ देखि सबे तुम लीना। दास नरायण काल अधीना।।
ताहू पर तुम पुनि हठ कीना। मोर वचन तुम एकु न चीन्हा।।
धर्मदास जो मोसन कहिया। सोऊ ध्यान त्व हृदय न रहिया।।
मोर प्रतीत तुम्हैं नहिं आवे। गुरू परतीत जगत कसलावे।।
भावार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने कहा कि हे धर्मदास! अब मुझे तेरी बुद्धि के स्तर का पता चल गया। तू जान-बूझकर अनजान बना हुआ है। जब तेरे को बता दिया, आँखों दिखा दिया कि नारायण दास काल का दूत है। मेरी आत्माओं को काल जाल में फांसने के लिए काल का भेजा आया है। तेरे को बार-बार समझाया है, वह तेरी बुद्धि में नहीं आ रहा है। अब तेरे हृदय में पुत्र मोह से अज्ञान अंधेरा छा गया है। काल के दूत को लेकर फिर हठ कर रहा है। मेरा एक वचन भी तेरी समझ में नहीं आया। हे धर्मदास! जो वचन तूने मेरे से किये थे कि मैं कभी नारायण दास को दीक्षा देने के लिए नहीं कहूंगा। अब तेरे हृदय से वह वादा भूल गया है। जब तुमको मुझ पर विश्वास नहीं हो रहा जबकि तेरे को सतलोक तक दिखा दिया तो फिर मेरे भेजे नाद अंश जो गुरू पद पर होगा, उस पर जगत कैसे विश्वास करेगा?
अनुराग सागर पृष्ठ 144 का सारांश:-
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बार-बार वही बातें दोहराई हैं जो पूर्व के पृष्ठ पर कही हैं।
अनुराग सागर के पृष्ठ 145 का सारांश:-
धर्मदास वचन
सुनत वचन धर्मदास सकाने। मनहीं माहिं बहुत पछताने।।
धाइ गिरे सतगुरू के पाई। हौं अचेत प्रभु होहु सहाई।।
चूक हमारी वकसहु स्वामी। विनती मानहु अन्तरयामी।।
हम अज्ञान शब्द तुम टारा। विनय कीन्ह हम बारंबारा।।
अब मैं चरण तुम्हारे गहऊँ। जो संतनिकी विनती करऊँ।।
पिता जानि बालक हठ लावे। गुण औगुण चित ताहि न आवे।।
पतित उधारण नाम तुम्हारा। औगुण मोर न करहु विचारा।।
भावार्थ:- परमेश्वर कबीर जी के वचन सुनकर धर्मदास जी बहुत लज्जित हुए और परमेश्वर कबीर जी के चरणों में गिरकर विलाप करने लगे कि हे स्वामी जी! मैं तो अचेत यानि मंद बुद्धि हूँ। मेरी गलती क्षमा करो। हे अंतर्यामी! मेरी विनती स्वीकार करो। मैं अज्ञानी हूँ। मैंने आपके वचन की अवहेलना की है। मैंने ऐसे गलती की है जैसे बालक अपने पिता से हठ कर लेता है, पिता बालक की गलती पर ध्यान नहीं देता, उसके अवगुण क्षमा कर देता है। आपका नाम तो पतित उद्धारण है। आप पापियों का उद्धार करने वाले हो, मेरे अवगुणों पर ध्यान न दो। बालक जानकर क्षमा कर दो।
कबीर परमेश्वर वचन
परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि हे धर्मदास! आप सतपुरूष अंश हैं। आप नारायण दास का मोह त्याग दो। तुम में और मेरे में कोई भेद नहीं है। यदि मैं आपको त्यागकर किसी अन्य में श्रद्धा करूं तो मेरा नरक में निवास हो।
कबीर वचन
भावार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने धर्मदास जी से कहा कि तेरा धन्य भाग है कि तूने मेरे को पहचान लिया और मेरी बात मानकर पुत्र मोह त्याग दिया।
अनुराग सागर के पृष्ठ 146 का सारांश:-
इस पृष्ठ में ऊपर की वाणी बनावटी हैं। यह धर्मदास जी की संतान चूड़ामणी जी वाली दामाखेड़ा गद्दी वाले महंतों की कलाकारी है। इसमें कोशिश की है यह दर्शाने की कि नारायण दास वाली संतान तो बिन्द वाली है और चूड़ामणी वाली संतान नाद वाली है ताकि हमारी महिमा बनी रहे कि हमारे से दीक्षा लेकर ही जगत के जीवों का कल्याण होगा। याद रखें कि नारायण दास ने तो कबीर जी की दीक्षा ली ही नहीं थी। वह तो विष्णु उर्फ कृष्ण पुजारी था। उसके पंथ का कबीर पंथ से कोई लेना-देना नहीं है। प्रिय पाठको! कबीर जी कहते हैं कि:-
चोर चुरावै तुम्बड़ी, गाड़ै पानी मांही। वो गाड़ै वा ऊपर आवै, सच्चाई छानी नांही।।
अनुराग सागर के पृष्ठ 140 पर परमेश्वर जी ने स्पष्ट कर रखा है कि मेरा शिष्य (नाद) तथा तेरे बिन्द से उत्पन्न पुत्रा चूड़ामणी जो पंथ चलाएगा और जीवों की मुक्ति कराएगा। इस चूड़ामणी को मैंने दीक्षा दी है तथा गुरू पद दिया है। यह मेरा नाद पुत्रा है। आगे इसकी बिन्दी (संतान) धारा चलेगी। वे इस गुरू गद्दी पर विराजमान होंगे। वे अज्ञानी होंगे। छठी पीढ़ी वाले महंत को काल के बारह पंथों में पाँचवां पंथ टकसारी पंथ होगा। वह भ्रमित करेगा। जिस कारण से मेरे द्वारा बताए यथार्थ भक्ति विधि तथा यथार्थ मंत्रा त्यागकर टकसारी पंथ वाले मंत्रा तथा आरती-चैंका दीक्षा रूप में देने लगेगा। तुम्हारा वंश यानि चूड़ामणी वाली संतान दुर्मति को प्राप्त होगी। वे बटपारे (ठग) बहुत जीवों को चैरासी लाख के चक्र में डालेंगे, नरक में ले जाएंगे। जो मेरा नाद परंपरा का अंश आएगा, उसके साथ झगड़ा करेंगे।
प्रत्यक्ष प्रमाण:- प्रिय पाठको! सन् 2012 में मेरे कुछ अनुयाईयों द्वारा मेरे विचारों की लिखी एक पुस्तक ‘‘यथार्थ कबीर पंथ परिचय‘‘ का प्रचार करते-करते दामाखेड़ा (छत्तीसगढ़) में चले गए। उस दिन दामाखेड़ा महंत गद्दी वालों का सत्संग चल रहा था। उस दिन समापन था। मेरे शिष्य सत्संग से जा रहे भक्तों को वह पुस्तक बाँटने लगे। उस आश्रम के किसी सेवक ने वह पुस्तक पहले ले रखी थी। वह पहले ही इस ताक में था कि रामपाल के शिष्य कहीं मिलें तो उनकी पिटाई करें। उस दिन दामाखेड़ा में ही उसने मेरे शिष्यों को सेवा करते देखा तो महंत श्री प्रकाश मुनि नाम साहेब जो चैदहवां गुरू गद्दी वाला बिन्दी परंपरा वाला महंत है, को बताया कि जो ‘‘यथार्थ कबीर पंथ परिचय‘‘ पुस्तक मैंने आपको दी थी, आज फिर उसी पुस्तक को रामपाल के शिष्य हमारी संगत में बाँट रहे हैं।
यह सुनकर महंत प्रकाश मुनि आग-बबूला हो गया और आदेश दिया कि उनको पकड़कर लाओ। उसी समय पुस्तक बाँट रहे मेरे अनुयाईयों में से पाँच को गाड़ी में जबरदस्ती डालकर ले गए। अन्य शिष्य पता चलने पर भाग निकले। जिन सेवकों को दामाखेड़ा वाले पकड़कर ले गए थे, उनको बेरहमी से मारा-पीटा, उनसे कहा कि कहो, फिर नहीं बाँटेंगे। उन्होंने कहा कि इसमें गलत क्या है? यह तो बताओ। उन सब मेरे शिष्यों को पीट-पीटकर अचेत कर दिया। फिर मुकदमा दर्ज करा दिया कि शांति भंग कर रहे थे। तीन दिन में जमानत हुई। ऐसे हैं ये धर्मदास जी की बिन्द परंपरा चुड़ामणी वाली दामाखेड़ा गद्दी के महंत जिनके विषय में परमेश्वर कबीर जी ने कहा हैः-
कबीर नाद अंश मम सत ज्ञान दृढ़ाही। ताके संग सभी राड़ बढ़ाई।।
अस सन्त महन्तन की करणी। धर्मदास मैं तो से बरणी।।
यही प्रमाण अनुराग सागर के पृष्ठ 140 पर है:-
आप हंस अधिक होय ताही। नाद पुत्रा से झगर कराहीं।।
(आपा हंस यह गलत है। यहाँ पर ‘‘आप अहम‘‘ है जिसका अर्थ है अपने आप में अहंकार।)
होवै दुरमत वंश तुम्हारा। नाद वंश रोके बटपारा।।
प्रिय पाठको! यह सर्व लक्षण मुझ दास (रामपाल दास) तथा दामाखेड़ा की गद्दी वाले धर्मदास जी के बिन्द वालों पर खरे उतरते हैं।
अनुराग सागर के इसी पृष्ठ 146 पर आगे गुरू महिमा है।
अनुराग सागर के पृष्ठ 147 का सारांश:-
इसमें भी गुरूदेव की महिमा का ज्ञान है जो सामान्य ज्ञान है।
अनुराग सागर के पृष्ठ 148 का सारांश:-
इसमें भी गुरू की महिमा है जो सामान्य ज्ञान है।
अनुराग सागर के पृष्ठ 149 पर भी गुरू महिमा है। यह सामान्य ज्ञान है कि परम संत की प्राप्ति के पश्चात् उसके साथ कपट-चतुराई न रखे। सच्चे मन से उनके वचनों का पालन करके कल्याण कराए। कागवृति को त्यागकर हंस दशा अपनाऐं।
अनुराग सागर पृष्ठ 150 पर भी सामान्य ज्ञान है।